
मुक़ाबिल अपने कोई है ज़ुरूर कौन है वो,
बिसाते-दहर है, बाज़ी बिछी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मुक़ाबिल अपने कोई है ज़ुरूर कौन है वो,
बिसाते-दहर है, बाज़ी बिछी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे,
तू बहुत देर से मिला है मुझे|
अहमद फ़राज़