
पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था,
पत्थर बन कर क्या तकते हो|
मोहसिन नक़वी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था,
पत्थर बन कर क्या तकते हो|
मोहसिन नक़वी
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं|
राहत इन्दौरी
ज़िन्दगी कू-ए-ना-मुरादी से,
किसको मुड़ मुड़ के देखती है अभी|
अहमद फ़राज़
अच्छा है जो मिला वो कहीं छूटता गया,
मुड़ मुड़ के ज़िन्दगी की तरफ देखना गया|
वसीम बरेलवी