
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी,
तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी|
वसीम बरेलवी
मैं अपनी हर इक साँस उसी रात को दे दूँ,
सर रख के मिरे सीने पे सो जाओ किसी दिन|
अमजद इस्लाम अमजद