
दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में,
कुछ बलायें थीं आसमानी भी।
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में,
कुछ बलायें थीं आसमानी भी।
फ़िराक़ गोरखपुरी
हो सजावारे-सजा क्यों जब मुकद्दर में मेरे,
जो भी उस जाने-जहाँ ने लिख दिया, मैंने किया|
अहमद फ़राज़
वो तेरे नसीब की बारिशें, किसी और छत पे बरस गईं,
दिले-बेख़बर मेरी बात सुन, उसे भूल जा उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की,
कोई चिराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे|
बशीर बद्र
कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर लेके आया है,
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है|
राजेश रेड्डी
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है,
उसको दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में|
क़तील शिफ़ाई
तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये,
फिर जो भी दर मिला है उसी दर के हो गये|
अहमद फ़राज़
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था,
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था|
अंजुम रहबर
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या वीर,
जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फ़कीर |
निदा फाज़ली