मुसाफिर जाएगा कहाँ!

आज काफी दिनों बाद एक फिल्मी गीत शेयर करने का मन हो रहा है | ऐसे ही इस गीत की पंक्तियाँ दोहराते हुए खयाल आया कि फिल्म- गाइड के लिए लिखे इस गीत में शैलेन्द्र जी ने कितनी सरल भाषा में जीवन दर्शन पिरो दिया है-

कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी,
पानी पे लिखी लिखाई,
है सबकी देखी, है सबकी जानी
हाथ किसी के न आई|


लीजिए प्रस्तुत हैं देव साहब की फिल्म- गाइड के लिए शैलेन्द्र जी द्वारा लिखे गए और सचिन देव बर्मन जी द्वारा अपने ही संगीत निर्देशन में, अनूठे अंदाज में गाये गए इस गीत के बोल –

वहाँ कौन है तेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ,
दम ले ले घड़ी भर, ये छैयां पाएगा कहाँ|

बीत गए दिन, प्यार के पल-छिन, सपना बनीं वो रातें,
भूल गए वो, तू भी भुला दे, प्यार की वो मुलाकातें,
सब दूर अंधेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ|

कोई भी तेरी राह न देखे, नैन बिछाए न कोई,
दर्द से तेरे कोई न तड़पा, आँख किसी की न रोई,
कहे किसको तू मेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ|

तूने तो सबको राह बताई, तू अपनी मंजिल क्यों भूला,
सुलझा के राजा, औरों की उलझन, क्यों कच्चे धागे में झूला,
क्यों नाचे सपेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ|

कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी, पानी पे लिखी लिखाई,
है सबकी देखी, है सबकी जानी, हाथ किसी के न आई|
कुछ तेरा न मेरा, मुसाफिर जाएगा कहाँ|


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

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आ जा रे परदेसी!!

आज मधुमती फिल्म के लिए शैलेन्द्र जी का लिखा एक फिल्मी गीत शेयर कर रहा हूँ, जिसे सलिल चौधरी जी के संगीत निर्देशन में स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने गाया था||

लीजिए आज प्रस्तुत हैं पुराने जमाने के इस सुपरहिट मधुर गीत के बोल-

आ जा रे परदेसी
मैं तो कब से खड़ी इस पार
ये अँखियाँ थक गईं पंथ निहार
आ जा रे परदेसी

मैं दिये की ऎसी बाती
जल न सकी जो, बुझ भी न पाती
आ मिल मेरे जीवन साथी
आ जा रे परदेसी

तुम संग जनम-जनम के फेरे
भूल गए क्यों साजन मेरे
तड़पत हूँ मैं सांझ-सबेरे
आ जा रे परदेसी

मैं नदिया, फ़िर भी मैं प्यासी
भेद ये गहरा, बात ज़रा-सी
बिन तेरे हर साँस उदासी
आ जा रे परदेसी


(आभार- एक बात मैं और बताना चाहूँगा कि अपनी ब्लॉग पोस्ट्स में मैं जो कविताएं, ग़ज़लें, शेर आदि शेयर करता हूँ उनको मैं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध ‘कविता कोश’ अथवा ‘Rekhta’ से लेता हूँ|)

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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बेटी बेटे!

हमारी हिन्दी फिल्मों के माध्यम से हमको अनेक अमर गीत देने वाले स्वर्गीय शैलेन्द्र जी का आज एक गीत शेयर कर रहा हूँ| यह गीत फिल्म- बेटी-बेटे में फिल्माया गया| गीत में यही है कि किस प्रकार एक माँ अपने बेटे-बेटी को समझाती है कि आज का दिन तो बीत गया अब हमको कल की तैयारी करनी है|

लीजिए प्रस्तुत है शैलेन्द्र जी का यह गीत जो माँ की ममता और गरीबी के संघर्ष को भी बड़ी खूबी से अभिव्यक्त करता है –

आज कल में ढल गया
दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा सो गई
रंग भरी शाम|

साँस साँस का हिसाब ले रही है ज़िन्दगी
और बस दिलासे ही दे रही है ज़िन्दगी
रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम
तू भी सोजा ….

रोटियों-सा गोल-गोल चांद मुस्‍कुरा रहा
दूर अपने देश से मुझे-तुझे बुला रहा
नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम
तू भी सोजा…

गर कठिन-कठिन है रात ये भी ढल ही जाएगी
आस का संदेशा लेके फिर सुबह तो आएगी
हाथ पैर ढूंढ लेंगे , फिर से कोई काम
तू भी सोजा…


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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क्या जाने किस भेस में बाबा!

आज एक बार फिर से मैं हिन्दी फिल्म जगत के एक अनूठे गीतकार स्वर्गीय पंडित भरत व्यास जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| भरत व्यास जी ने हिन्दी फिल्मों को कुछ बहुत प्यारे गीत दिए हैं, जैसे- ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी’, ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’, ‘आ लौट के आ जा मेरे मीत’, ‘ज्योत से ज्योत जलाते चलो’ आदि-आदि|

लीजिए आज प्रस्तुत है पंडित भरत व्यास जी का यह गीत-

बड़े प्यार से मिलना सबसे
दुनिया में इंसान रे
क्या जाने किस भेस में बाबा
मिल जाए भगवान रे|

कौन बड़ा है कौन है छोटा
ऊँचा कौन और नीचा
प्रेम के जल से सभी को सींचा
यह है प्रभू का बग़ीचा|
मत खींचों तुम दीवारें
इंसानों के दरमियान रे
क्या जाने किस भेस में बाबा
मिल जाए भगवान रे|


ओ महंत जी
तुम महंत जी खोज रहे
उन्हें मोती की लड़ियों में,
प्रभू को मोती की लड़ियों में|
कभी उन्हें ढूँढा क्या
ग़रीबों की अँतड़ियों में|
दीन जनों के अँसुवन में,
क्या कभी किया है स्नान रे|

क्या जाने किस भेस में बाबा
मिल जाए भगवान रे|


क्या जाने कब श्याम मुरारी
आ जावे बन कर के भिखारी|
लौट न जाए कभी द्वार से,
बिना लिए कुछ दान रे|
क्या जाने किस भेस में बाबा
मिल जाए भगवान रे|


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे!

आज स्वर्गीय मजरूह सुल्तानपुरी साहब का लिखा एक गीत शेयर कर रहा हूँ|
यह गीत 1963 में रिलीज़ हुई फिल्म – ‘एक राज़’ के लिए लता मंगेशकर जी ने अपने सुमधुर स्वर में गाया था| इसका मधुर संगीत तैयार किया था चित्रगुप्त जी ने|

लीजिए प्रस्तुत है, मजरूह साहब का लिखा और स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी का गाया यह भावपूर्ण गीत-

उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे,
मुहब्बत करेगी असर धीरे-धीरे|

ये माना ख़लिश है अभी हल्की-हल्की
ख़बर भी नहीं है तुम को मेरे दर्द-ए-दिल की
ख़बर हो रहेगी मगर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र …

मिलेगा जो कोई हसीं चुपके-चुपके
मेरी याद आ जाएगी वहीं चुपके-चुपके
सताएगा दर्द-ए-जिगर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र …

सुलगते हैं कब से इसी चाह में हम
पड़े हैं निगाहें डाले इसी राह में हम
कि आओगे तुम भी इधर धीरे-धीरे
उठेगी तुम्हारी नज़र …


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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तुम हमें प्यार करो या ना करो!

स्वर्गीय शैलेन्द्र जी का लिखा एक गीत आज शेयर कर रहा हूँ| जैसा मैंने पहले भी कहा है शैलेन्द्र जी फिल्म नगरी में विशाल बैनरों से जुड़े रहकर भी अंत तक एक जनकवि बने रहे|
यह गीत 1964 में रिलीज़ हुई फिल्म – ‘कैसे कहूँ’ के लिए लता मंगेशकर जी ने अपने सुमधुर स्वर में गाया था| इसका मधुर संगीत तैयार किया था सचिन देव बर्मन जी ने|

लीजिए प्रस्तुत है, शैलेन्द्र जी का लिखा और स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी का गाया यह भावपूर्ण गीत-

तुम हमें प्यार करो या ना करो,
हम तुम्हें प्यार किये जायेगें
चाहे किस्मत में ख़ुशी हो के ना हो,
गम उठाकर ही जिए जायेगें
तुम हमें प्यार करो या ना करो…

हम नहीं वो जो गमे-इश्क से घबरा जाएं
हो के मायूस जुबां पर कोई शिकवा लाये
चाहे कितना ही बढ़े दर्दे जिगर,
अपने होंठो को सिये जायेंगे
तुम हमें प्यार करो या ना करो…..

तुम सलामत हो तो हम चैन भी पा ही लेंगे
किसी सूरत से दिल की लगी लगा ही लेंगें
प्यार का जाम मिले या ना मिले,
हम तो आंसू भी पिए जायेंगें
तुम हमें प्यार करो या ना करो…


तोड़ दी आस तो फिर इतना ही एहसान करो
दिल में रहना जो ना चाहो तो नज़र ही में रहो
ठेस लगती जो है दिल पर तो लगे,
गम उठाकर ही जिए जायेगें
तुम हमें प्यार करो या ना करो


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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तुम न जाने किस जहाँ में खो गये!

गायक सोनू निगम का एक इंटरव्यू सुन रहा था, जिसमें उन्होंने स्वर्गीय लता मंगेशकर जी के एक गीत को मिसाल के रूप में याद किया था| मुझे लगा कि आज इसी गीत को शेयर कर लेना चाहिए| यह गीत है फिल्म- ‘सज़ा’ से जिसे लिखा था – साहिर लुधियानवी जी ने और इसका संगीत तैयार किया था स्वर्गीय सचिन देव बर्मन साहब ने|

लीजिए प्रस्तुत है, फिल्म- सज़ा के लिए साहिर लुधियानवी साहब का लिखा और सचिन देव बर्मन जी के संगीत निर्देशन में लता जी द्वारा लाजवाब अंदाज़ में गाया गया यह भावपूर्ण गीत-



तुम न जाने किस जहाँ में खो गये
हम भरी दुनिया में तनहा हो गये|
तुम न जाने किस जहाँ में …

एक जां और लाख ग़म,
घुट के रह जाये न दम
आओ तुम को देख लें,
डूबती नज़रों से हम
लूट कर मेरा जहाँ
छुप गये हो तुम कहाँ – २
तुम कहाँ, तुम कहाँ, तुम कहाँ
तुम न जाने किस जहाँ में …

मौत भी आती नहीं,
रात भी जाती नहीं
दिल को ये क्या हो गया,
कोई शै भाती नहीं
लूट कर मेरा जहाँ,
छुप गये हो तुम कहाँ – २
तुम कहाँ, तुम कहाँ, तुम कहाँ
तुम न जाने किस जहाँ में …

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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चल मेरे साथ ही चल!

हिन्दी फिल्मों के एक प्रमुख गीतकार और प्रसिद्ध शायर जनाब हसरत जयपुरी जी की एक नज़्म आज शेयर कर रहा हूँ| मुझे ध्यान आता है कि मेरे प्रिय नायक, निर्माता और निर्देशक- राज कपूर साहब की फिल्मों में जहां संगीतकार शुरू की बहुत सारी फिल्मों में शंकर – जयकिशन की जोड़ी होती थी, पुरुष गायक मुकेश जी और मन्ना डे जी होते थे, वहीं गीतकारों की भी एक जोड़ी थी, शैलेन्द्र जी और हसरत जयपुरी जी| शैलेन्द्र जी के बहुत से गीत मैंने शेयर किए हैं, शायद हसरत जयपुरी जी के कुछ कम गीत शेयर किए हैं, आज उनकी एक नज़्म शेयर कर रहा हूँ|

हसरत जयपुरी जी की जो नज़्म मैं आज शेयर कर रहा हूँ, उसे जयपुर के गायकों ज़नाब अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन की प्रसिद्ध जोड़ी ने गाया था| ऐसे ही याद आ रहा है कि आकाशवाणी जयपुर में रहते हुए मैंने वर्ष 1980 से 1983 के बीच बहुत बार इन गायक कलाकारों के साथ चाय पी थी, तब वे प्रोग्राम के सिलसिले में मेरे सहकर्मी रामप्रताप बैरवा जी के पास आते थे|

लीजिए आज प्रस्तुत है जनाब हसरत जयपुरी की लिखी और ज़नाब अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन द्वारा गायी गई यह प्रसिद्ध नज़्म –

चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल

हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल

प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल

अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत पे ग़ज़ल, चल

पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चल|


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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तो कितना अच्छा होता!

आज शैलेन्द्र जी का लिखा एक गीत शेयर कर रहा हूँ| शैलेन्द्र जी मेरे अत्यंत प्रिय फिल्मी गीतकार हैं, जिनको मैं फिल्मों का जनकवि भी कहता हूँ| आज का यह गीत 1961 में रिलीज हुई फिल्म- ‘ससुराल’ कि लिए लिखा गया था और इसको शंकर जयकिशन की जोड़ी के संगीत निर्देशन में, मुकेश जी और लता जी ने बड़े खूबसूरत अंदाज में गाया है|

लीजिए आज प्रस्तुत हैं इस गीत के बोल:

अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता|
प्यार की रात का कोई न सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता|

पास रहकर भी बहुत दूर बहुत दूर रहे,
एक बन्धन में बँधे फिर भी तो मज़बूर रहे,
मेरी राहों में न उलझन का अँधेरा होता,
तो कितना अच्छा होता|

दिल मिले, आँख मिली, प्यार न मिलने पाए,
बाग़बाँ कहता है दो फूल न खिलने पाएँ,
अपनी मंज़िल को जो काँटों ने न घेरा होता,
तो कितना अच्छा होता|


अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले,
मिलें तो आग उगल दें, कटें तो धुआँ करें
अपनी दुनिया में भी सुख चैन का फेरा होता
तो कितना अच्छा होता|
अपनी उल्फ़त पे …


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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मेरे इश्क़ का सितारा!

भारतीय फिल्म जगत के तीन प्रमुख पुरुष गायकों में से एक स्वर्गीय मोहम्मद रफी साहब का एक दर्द भरा गीत आज शेयर कर रहा हूँ| रफी-मुकेश-किशोर ये एक ऐसी त्रिवेणी थे जिसने भारतीय फिल्म संगीत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है| वैसे इनके अलावा भी मन्ना डे, हेमंत कुमार, स्वयं सचिन देव बर्मन जी आदि-आदि अनेक गायक थे|

आज मैं रफी साहब का एक प्रसिद्ध गीत शेयर कर रहा हूँ| रफी साहब की रेंज ऐसी लाजवाब थी जो उनको एक बहुत ऊंचा स्थान गायकी के क्षेत्र में दिलाती है|

लीजिए आज प्रस्तुत हैं इस रफी साहब का एक दर्द भरा गीत, जिसे फिल्म- ‘दो बदन’ के लिए शकील बदायुनी साहब ने लिखा था, रवि साहब ने इसका संगीत तैयार किया था और रफी साहब ने इस गीत में अपनी वाणी के माध्यम से भरपूर दर्द उंडेल दिया था, लीजिए प्रस्तुत हैं इस गीत के बोल:

रहा गर्दिशों में हरदम
मेरे इश्क़ का सितारा
कभी डगमगायी कश्ती,
कभी खो गया किनारा|

कोई दिल का खेल देखे,
कि मुहब्बतों की बाज़ी
वो क़दम क़दम पे जीते,
मैं क़दम क़दम पे हारा|

ये हमारी बदनसीबी
जो नहीं तो और क्या है
कि उसी के हो गये हम,
जो न हो सका हमारा|


पड़े जब ग़मों के पाले,
रहे मिट के मिटनेवाले
जिसे मौत ने न पूछा,
उसे ज़िंदगी ने मारा|


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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