
हर शय से बे-नियाज़ रहे जिनमें हुस्न ओ इश्क़,
ऐ ज़िंदगी बता कि वो लम्हे किधर गए|
महेश चंद्र नक़्श
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हर शय से बे-नियाज़ रहे जिनमें हुस्न ओ इश्क़,
ऐ ज़िंदगी बता कि वो लम्हे किधर गए|
महेश चंद्र नक़्श
नैरंगियाँ चमन की पशेमान हो गईं,
रुख़ पर किसी के आज जो गेसू बिखर गए|
महेश चंद्र नक़्श
निकला जो क़ाफ़िले से नई जुस्तुजू लिए,
कुछ दूर साथ साथ मिरे राहबर गए|
महेश चंद्र नक़्श
दुनिया से हट के इक नई दुनिया बना सकें,
कुछ अहल-ए-आरज़ू इसी हसरत में मर गए|
महेश चंद्र नक़्श
तस्वीर-ए-ज़िंदगी में नया रंग भर गए,
वो हादसे जो दिल पे हमारे गुज़र गए|
महेश चंद्र नक़्श
अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में,
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
माना कि थी ग़मगीन कली ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से,
चुप रह के बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
किस तरह करें तुझ से गिला तेरे सितम का,
मदहोश इशारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी,
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
तूफ़ान का शेवा तो है कश्ती को डुबोना,
ख़ामोश किनारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श