
ज़ंजीर ओ दीवार ही देखी तुम ने तो ‘मजरूह’ मगर हम,
कूचा कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़ंजीर ओ दीवार ही देखी तुम ने तो ‘मजरूह’ मगर हम,
कूचा कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
जाओ तुम अपने बाम की ख़ातिर सारी लवें शम्ओं की कतर लो,
ज़ख़्म के मेहर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चराग़ाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
अहद-ए-वफ़ा यारों से निभाएँ नाज़-ए-हरीफ़ाँ हँस के उठाएँ,
जब हमें अरमाँ तुमसे सिवा था अब हैं पशेमाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
हमको जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा,
चाक किए हैं हमने अज़ीज़ो चार गरेबाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
ऐसे हंस हंस के न देखा करो सबकी जानिब,
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
मिलने को यूँ तो मिला करती हैं सबसे आँखें,
दिल के आ जाने के अंदाज़ जुदा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मिरी नज़रें देखो,
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
हैं ज़माने में अजब चीज़ मोहब्बत वाले,
दर्द ख़ुद बनते हैं ख़ुद अपनी दवा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं,
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ,
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा|
मजरूह सुल्तानपुरी