
जाने चेहरे पे क्या नज़र आया,
’नक़्श’ ने फिर न आइना देखा।
नक़्श लायलपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जाने चेहरे पे क्या नज़र आया,
’नक़्श’ ने फिर न आइना देखा।
नक़्श लायलपुरी
ये जो रात दिन का है खेल सा, उसे देख इसपे यकीं न कर,
नहीं अक्स कोई भी मुस्तक़िल सरे-आईना उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
उसको आईना बनाया, धूप का चेहरा मुझे,
रास्ता फूलों का सबको, आग का दरिया मुझे|
बशीर बद्र
एक ही थी सुकूँ की जगह,
घर में ये आइना किसलिए|
निदा फ़ाज़ली
आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी,
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
ये लफ़्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल।
कुँअर बेचैन
जब किसी से कोई गिला रखना,
सामने अपने आईना रखना|
निदा फ़ाज़ली
बदन चुरा के वो चलता है मुझसे शीशा-बदन,
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूंगा उसे|
राहत इन्दौरी
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में,
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी|
गुलज़ार
आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स,
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम|
राजेश रेड्डी