
तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद,
साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद,
साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
सुनता था वो भी सब से पुरानी कहानियाँ,
शायद रफ़ाक़तों की ज़रूरत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
वो मुझसे बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया,
वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
मुझ से बिछड़ के शहर में घुल-मिल गया वो शख़्स,
हालाँकि शहर-भर से अदावत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
मुझ को भी शौक़ था नए चेहरों की दीद का,
रस्ता बदल के चलने की आदत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी,
मेरी तरह किसी से मोहब्बत उसे भी थी|
मोहसिन नक़वी
इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं ‘मोहसिन’,
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर|
मोहसिन नक़वी
ऐ दिल तुझे दुश्मन की भी पहचान कहाँ है,
तू हल्क़ा-ए-याराँ में भी मोहतात* रहा कर|
*मोहित
मोहसिन नक़वी
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे,
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर|
मोहसिन नक़वी
क्या जानिए क्यूँ तेज़ हवा सोच में गुम है,
ख़्वाबीदा परिंदों को दरख़्तों से उड़ाकर|
मोहसिन नक़वी