कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे!

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब* समझते होंगे,
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे|

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बशीर बद्र

चाँद पे परियाँ रहती थीं!

मुझको यकीं है सच कहती थी, जो भी अम्मी कहती थी,
जब मेरे बचपन के दिन थे, चाँद पे परियाँ रहती थीं|

जावेद अख़्तर

चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में!

कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में,
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की|

गुलज़ार

मेरी रात कैसे चमक गई!

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई,
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई|

बशीर बद्र

अकेला है तो सबका लगता है!

भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता,
चाँद अकेला है तो सबका लगता है|

वसीम बरेलवी

जब दुख का सूरज सर पर हो!

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं,
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो|

इब्न ए इंशा

फिर मेल की सूरत क्यूँकर हो!

हम साँझ समय की छाया हैं तुम चढ़ती रात के चन्द्रमा,
हम जाते हैं तुम आते हो फिर मेल की सूरत क्यूँकर हो|

इब्न ए इंशा

तेरे आगे चाँद पुराना लगता है!

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है,
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है|

कैफ़ भोपाली

कुछ ने कहा चेहरा तेरा!

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा |

इब्न ए इंशा