
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब* समझते होंगे,
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे|
*Style
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब* समझते होंगे,
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे|
*Style
बशीर बद्र
चाँद होता न आसमाँ पे अगर,
हम किसे आप सा हसीं कहते|
गुलज़ार
मुझको यकीं है सच कहती थी, जो भी अम्मी कहती थी,
जब मेरे बचपन के दिन थे, चाँद पे परियाँ रहती थीं|
जावेद अख़्तर
कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में,
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की|
गुलज़ार
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई,
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई|
बशीर बद्र
भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता,
चाँद अकेला है तो सबका लगता है|
वसीम बरेलवी
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं,
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो|
इब्न ए इंशा
हम साँझ समय की छाया हैं तुम चढ़ती रात के चन्द्रमा,
हम जाते हैं तुम आते हो फिर मेल की सूरत क्यूँकर हो|
इब्न ए इंशा
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है,
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है|
कैफ़ भोपाली
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा,
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा |
इब्न ए इंशा