
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते,
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते,
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ|
राजेश रेड्डी
‘मुल्ला’ का मस्जिदों में तो हमने सुना न नाम,
ज़िक्र उसका मै-कदों में मगर दूर दूर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’
मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये,
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना|
निदा फ़ाज़ली
जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है,
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है|
सुदर्शन फाक़िर