
दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें,
सारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें,
सारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुए,
कूचा – ए – रेशमो -किमख़्वाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा,
सारी दुनिया दिले- बेताब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
रात भर जागते रहने का सिला है शायद,
तेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहीं,
सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ,
रोज़ उंगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से तबाही का,
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है|
मुनव्वर राना
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है,
मसायल से घिरी रहती है फिर भी मुस्कुराती है|
मुनव्वर राना
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है,
कली जब सो के उठती है तो तितली मुस्कुराती है|
मुनव्वर राना