
भाग रही है गेंद के पीछे
जाग रही है चाँद के नीचे,
शोर भरे काले नारों से
अब तक डरी नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
भाग रही है गेंद के पीछे
जाग रही है चाँद के नीचे,
शोर भरे काले नारों से
अब तक डरी नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
घर में ही मत इसे सजाओ,
इधर-उधर भी ले के जाओ|
यूँ लगता है जैसे तुमसे
अब तक खुली नहीं है दुनिया|
निदा फ़ाज़ली
चार घरों के एक मुहल्ले
के बाहर भी है आबादी,
जैसी तुम्हें दिखाई दी है
सबकी वही नहीं है दुनिया|
निदा फ़ाज़ली
जितनी बुरी कही जाती है
उतनी बुरी नहीं है दुनिया,
बच्चों के स्कूल में शायद
तुमसे मिली नहीं है दुनिया|
निदा फ़ाज़ली
कहीं तो कोई होगा जिसको अपनी भी ज़रूरत हो,
हरेक बाज़ी में दिल की हार हो ऐसा नहीं होता|
निदा फ़ाज़ली
सिखा देती है चलना ठोकरें भी राहगीरों को,
कोई रस्ता सदा दुशवार हो ऐसा नहीं होता|
निदा फ़ाज़ली
कहानी में तो किरदारों को जो चाहे बना दीजे,
हक़ीक़त भी कहानीकार हो ऐसा नहीं होता|
निदा फ़ाज़ली
हरेक कश्ती का अपना तज़ुर्बा होता है दरिया में,
सफर में रोज़ ही मंझदार हो ऐसा नहीं होता|
निदा फ़ाज़ली
जो हो इक बार, वह हर बार हो ऐसा नहीं होता,
हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा नहीं होता|
निदा फ़ाज़ली
एक ही थी सुकूँ की जगह,
घर में ये आइना किसलिए|
निदा फ़ाज़ली