वो याद भी कम आते हैं!

और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं|

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात को रो रो सुब्ह किया!

याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है,
रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया|

मीर तक़ी मीर

कई बार चराग़ों को बुझा कर!

इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं ‘मोहसिन’,
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर|

मोहसिन नक़वी

चराग़-ओ-आफ़्ताब ग़ुम!

चराग़-ओ-आफ़्ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी|

सुदर्शन फ़ाकिर

शहर में रात जागती है अभी!

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे,
शहर में रात जागती है अभी|

नासिर काज़मी

एक खिड़की मगर खुली है अभी!

सो गए लोग उस हवेली के,
एक खिड़की मगर खुली है अभी|

नासिर काज़मी

चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में!

कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में,
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की|

गुलज़ार

मेरी रात कैसे चमक गई!

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई,
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई|

बशीर बद्र

हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में!

नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात,
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में|

कैफ़ी आज़मी

‘फ़ैज़’ ग़ज़ल इब्तिदा करो!

भीगी है रात ‘फ़ैज़’ ग़ज़ल इब्तिदा करो,
वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है|

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़