
और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है,
रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया|
मीर तक़ी मीर
इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं ‘मोहसिन’,
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर|
मोहसिन नक़वी
चराग़-ओ-आफ़्ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी|
सुदर्शन फ़ाकिर
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे,
शहर में रात जागती है अभी|
नासिर काज़मी
सो गए लोग उस हवेली के,
एक खिड़की मगर खुली है अभी|
नासिर काज़मी
कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में,
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की|
गुलज़ार
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई,
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई|
बशीर बद्र
नंगी सड़कों पर भटक कर देख जब मरती है रात,
रेंगता है हर तरफ़ वीराना तेरे शहर में|
कैफ़ी आज़मी
भीगी है रात ‘फ़ैज़’ ग़ज़ल इब्तिदा करो,
वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़