
ख़ुद को माज़ी में रखूँ हाल में रहते हुए भी,
नए वक़्तों के ख़यालात न लिखने पाऊँ|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ख़ुद को माज़ी में रखूँ हाल में रहते हुए भी,
नए वक़्तों के ख़यालात न लिखने पाऊँ|
राजेश रेड्डी