
आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा|
परवीन शाकिर
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा|
परवीन शाकिर
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा,
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा|
परवीन शाकिर
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है,
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की|
परवीन शाकिर
उसने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा,
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की|
परवीन शाकिर
तेरा पहलू तिरे दिल की तरह आबाद रहे,
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की|
परवीन शाकिर
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया,
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की|
परवीन शाकिर
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उसने,
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की|
परवीन शाकिर
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की,
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की|
परवीन शाकिर
शाम की ना-समझ हवा पूछ रही है इक पता,
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी|
परवीन शाकिर