
हमने पढ़कर जिसे प्यार सीखा कभी
एक गलती से वह व्याकरण खो गया|
रामावतार त्यागी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमने पढ़कर जिसे प्यार सीखा कभी
एक गलती से वह व्याकरण खो गया|
रामावतार त्यागी
यह जमीं तो कभी भी हमारी न थी,
वह हमारा तुम्हारा गगन खो गया|
रामावतार त्यागी
दोस्ती का सभी ब्याज़ जब खा चुके,
तब पता यह चला, मूलधन खो गया|
रामावतार त्यागी
जो हज़ारों चमन से महकदार था,
क्या किसी से कहें वह सुमन खो गया|
रामावतार त्यागी
यह शहर पा लिया, वह शहर पा लिया,
गाँव को जो दिया था वचन खो गया|
रामावतार त्यागी
घर वही, तुम वही, मैं वही, सब वही,
और सब कुछ है वातावरण खो गया|
रामावतार त्यागी
तन बचाने चले थे कि मन खो गया,
एक मिट्टी के पीछे रतन खो गया|
रामावतार त्यागी
रस्ता न भूलिएगा, दुखों के मकान का,
जिस ओर को दुआर है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त
बैठा है तनहा बाग में, एक बूढ़ा आदमी,
सावन की यादगार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त
टापें बिछा रही हैं, अंधेरे में जामुनें,
इक तेज घुड़सवार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त