
उनके भी क़त्ल का इल्ज़ाम हमारे सर है,
जो हमें ज़हर पिलाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उनके भी क़त्ल का इल्ज़ाम हमारे सर है,
जो हमें ज़हर पिलाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
हम भी अमृत के तलबगार रहे हैं लेकिन,
हाथ बढ़ जाते हैं ख़ुद ज़हर-ए-तमन्ना की तरफ़|
राही मासूम रज़ा
इश्क़ का ज़हर पी लिया “फ़ाकिर”,
अब मसीहा भी क्या दवा देगा|
सुदर्शन फ़ाकिर
मजबूरियों के ज़हर से कर लेंगे ख़ुदकुशी,
ये बुज़दिली का जुर्म भी गोया करेंगे हम|
क़तील शिफ़ाई
शाइस्ता महफ़िलों की फ़ज़ाओं में ज़हर था,
ज़िंदा बचे हैं ज़ेहन की आवारगी से हम|
निदा फ़ाज़ली
पानियों से तो प्यास बुझती नहीं,
आइए ज़हर पी के देखते हैं|
राहत इन्दौरी
यह दौरे खिरद है, दौरे-जुनूं इस दौर में जीना मुश्किल है,
अंगूर की मै के धोखे में ज़हराब का पीना मुश्किल है|
अर्श मलसियानी
अपनी तारीख़-ए-मोहब्बत के वही हैं सुक़रात,
हँस के हर साँस पे जो ज़हर पिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी
तुमको भुला रही थी कि तुम याद आ गए,
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए|
अंजुम रहबर
इक ज़हर के दरिया को दिन-रात बरतता हूँ ।
हर साँस को मैं, बनकर सुक़रात, बरतता हूँ ।
राजेश रेड्डी