कविता- शायरी, गीत-ग़ज़ल आदि अभिव्यक्ति के नायाब नमूने होते हैं| वैसे तो हमारे नेता लोग जो भाषण में माहिर होते हैं, वे भाषा के अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं| उपन्यास-कहानी आदि में भी हम बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ पाते हैं| परंतु कविता-गीत-ग़ज़ल आदि में विशेष बात होती है| यहाँ बहुत ज्यादा शब्द नहीं होते| यहाँ कम शब्दों में ‘दिव्य अर्थ प्रतिपादन’ की शर्त होती है| ज़रूरी नहीं कि कविता-ग़ज़ल आदि बड़ी हो, थोड़े शब्दों में ही ये ज्यादा बड़ी अभिव्यक्ति करते हैं|
आज प्रस्तुत है क़तील शिफ़ाई जी की एक खूबसूरत ग़ज़ल, जिसमें कम शब्दों में ही बहुत सुंदर बात की गई है-
पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये, फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइये|
पहले मिज़ाज-ए-राहगुज़र जान जाइये, फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइये|
कुछ कह रही हैं आपके सीने की धड़कनें, मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइये|
इक धूप सी जमी है निगाहों के आस पास, ये आप हैं तो आप पे क़ुर्बान जाइये|
शायद हुज़ूर से कोई निस्बत हमें भी हो, आँखों में झाँक कर हमें पहचान जाइये|
हिन्दी काव्य मंचों के प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य जी एक अत्यंत सृजनशील रचनाकार थे, छंद पर उनका पूर्ण अधिकार था और उनकी हास्य कविताओं को बहुत आनंद और आदर के साथ सुना जाता था| मेरा सौभाग्य है कि अनेक बार कवि सम्मेलनों के आयोजन के कारण उनसे भेंट का अवसर मिला था|
आज प्रस्तुत है नेताजी का नख-शिख वर्णन करने वाली उनकी कविता, यह कविता काफी लंबी है, अतः इसको दो भागों में शेयर करूंगा, पहले भाग के रूप में, नेताजी के कुछ अंगों का वर्णन आज प्रस्तुत है-
सिर
बेपैंदी के लोटे-सा सिर शोभित शीश-क्षितिज पर लघु-लघु कुंतल सूखाग्रस्त क्षेत्र में जैसे उजड़ी हुई फसल दिखती हो धवल हिमालय-सा गर्वित सिर अति उन्नत सिर वोट मांगते समय स्वयं यों झुक जाता है सिया-हरण से पूर्व झुका था जैसे रावण या डसने से पूर्व सर्प जैसे झुकता है स्वर्ण पट्टिका-सा ललाट है कनपटियों तक चंदन-चित्रित चौड़ा माथा कनपटियों पर रेख उभरती कूटनीति की माथे पर दुर्भाग्य देश का लिखा हुआ है
कान
सीपी जैसे कान शब्द जय-जय के मोती कान नहीं ये षडयंत्रों के कुटिल भँवर हैं एक कान ज्यों विरोधियों के लिए चक्रव्यूह एक कान ज्यों चुगलखोर चमचे का कमरा!
नयन
रिश्वत के अंजन से अंजित पर मद-रंजित दूर किसी ऊँची कुर्सी पर वर्षों से टकटकी लगाए गिध्द नयन दो भौहें हैं ज्यों मंत्री-मंडल की बैठक हो पलकें ज्यों उद्धाटन मदिरा की दुकान का अंतरंग कमरे-सी भीतर काली पुतली पुतली में छोटा-सा गोलक जैसे कुर्सी क्रोध-कुटिलता कपट कोरकों में बैठे हैं शर्म न जाने इन ऑंखों में कहाँ छुप गई!
नाक
शहनाई-सी नाक, नफीरी जैसे नथुने नाक नुकीली में ऊपर से है नकेल पर नथ करती है है नेता की नाक, नहीं है ऐरी-गैरी कई बार कट चुकी किंतु फिर भी अकाट्य है!
मुख
होंठ कत्थई इन दोनों होठों का मिलना कत्थे में डूबा हो जैसे चांद ईद का चूने जैसे दाँत, जीभ ताम्बूल पत्र-सी आश्वासन का जर्दा भाषण की सुपाड़ियाँ नेताजी का मुख है अथवा पानदान है अधरों पर मुस्कान सितारे जैसे टूटें बत्तीसी दिखती बत्तीस मोमबत्ती-सी बड़ा कठिन लोहे के चने चबाना लेकिन कितने लोहे के पुल चबा लिए इन दृढ़ दाँतों ने निगल गई यह जीभ न जाने कितनी सड़कें लोल-कपोल गोल मुख-मंडल मुख पर काला तिल कलंक-सा चांद उतर आया धरती पर नेता की सूरत में!
हिन्दी के गीत- कविता संसार के एक और अनमोल रत्न स्वर्गीय रमानाथ अवस्थी जी को आज याद कर रहा हूँ| पहले भी इनके कुछ गीत मैंने शेयर किए है| भावुकता का अजीब संसार होता है इन लोगों के पास, जिसमें ये जीते हैं और अपनी अनूठी अनुभूतियों से हमें परिचित कराते हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रमानाथ अवस्थी जी का यह गीत-
प्यार से मुझको बुलाओगे जहां, एक क्या सौ बार आऊँगा वहां|
पूछने की है नहीं फ़ुर्सत मुझे, कौन हो तुम क्या तुम्हारा नाम है| किसलिए मुझको बुलाते हो कहां, कौन सा मुझसे तुम्हारा काम है|
फूल से तुम मुस्कुराओगे जहाँ, मैं भ्रमर सा गुनगुनाऊँगा वहां|
कौन मुझको क्या समझता है यहां, आज तक इस पर कभी सोचा नहीं| आदमी मेरे लिए सबसे बड़ा, स्वर्ग में या नरक में वह हो कहीं|
आदमी को तुम झुकाओगे जहां, प्राण की बाजी लगाऊँगा वहां|
जानता हूँ एक दिन मैं फूल-सा, टूट जाऊँगा बिखरने के लिए| फिर न आऊंगा तुम्हारे रूप की, रौशनी में स्नान करने के लिए|
किन्तु तुम मुझको भुलाओगे जहां, याद अपनी मैं दिलाऊँगा वहां|
मैं नहीं कहता कि तुम मुझको मिलो, और मिलकर दूर फिर जाओ चले| चाहता हूँ मैं तुम्हें देखा करूं, बादलों से दूर जा नभ के तले|
सर उठाकर तुम झुकाओगे जहां, बूंद बन-बन टूट जाऊँगा वहां|
एक सुरीले गीतकार और भारतीय काव्य मंचों की शान श्री सोम ठाकुर जी का एक प्यारा सा गीत आज शेयर कर रहा हूँ| गीत का सौंदर्य और अभिव्यक्ति की दिव्यता स्वयं ही पाठक/श्रोता को सम्मोहित कर लेती है|
लीजिए प्रस्तुत है प्रतीक्षा का यह प्यारा सा गीत–
खिड़की पर आंख लगी, देहरी पर कान।
धूप-भरे सूने दालान, हल्दी के रूप भरे सूने दालान।
परदों के साथ-साथ उड़ता है- चिड़ियों का खण्डित-सा छाया क्रम झरे हुए पत्तों की खड़-खड़ में उगता है कोई मनचाहा भ्रम मंदिर के कलशों पर- ठहर गई सूरज की कांपती थकान धूप-भरे सूने दालान।
रोशनी चढ़ी सीढ़ी-सीढ़ी डूबा मन जीने केमोड़ों को घेरता अकेलापन|
ओ मेरे नंदन! आंगन तक बढ़ आया एक बियाबान। धूप भरे सूने दालान।
भारतीय उपमहाद्वीप में उर्दू के जो सर्वश्रेष्ठ शायर हुए हैं, उनमें से एक रहे हैं जनाब अहमद फराज़, वैसे तो श्रेष्ठ कवियों/शायरों के लिए सीमाओं का कोई महत्व नहीं होता, लेकिन यह बता दूँ कि फराज़ साहब पाकिस्तान में थे और उनमें इतना साहस था की उन्होंने वहाँ मिलिटरी शासन का विरोध किया था| फराज़ साहब की अनेक गज़लें भारत में भी लोगों की ज़ुबान पर रहती हैं| इस ग़ज़ल के कुछ शेर भी गुलाम ली साहब ने गाये हैं| वैसे मैं भी ग़ज़ल के कुछ चुने हुए शेर ही दे रहा हूँ, जिनमें थोड़ी अधिक कठिन उर्दू है, उनको मैंने छोड़ दिया है|
लीजिए प्रस्तुत है यह प्यारी सी ग़ज़ल–
अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जाना, याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जाना|
यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है, किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्सां जाना|
ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है, हमने जैसे भी बसर की तेरा एहसां जाना|
दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी, दिल की क्या बात करें दिल तो है नादां जाना|
अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर, बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जाना|
मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद, दिल पुकारे ही चला जाता है जाना जाना|
हम भी क्या सादा थे हमने भी समझ रखा था, ग़म-ए-दौराँ से जुदा है, ग़म-ए-जाना जाना|
हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है, हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ|
जिसको देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है, शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िन्दाँ जाना|
अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये, और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जाना|
हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे, हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जाना|
आज साहिर लुधियानवी साहब की एक रचना शेयर कर रहा हूँ| साहिर जी फिल्मी दुनिया के एक ऐसे गीतकार थे जिनका नाम अदब की दुनिया में भी बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता था| वे मुशायरों की शान हुआ कराते थे और बड़े स्वाभिमानी भी थे, उन्होंने ही फिल्म और संगीत वालों के सामने यह शर्त रखी थी कि जिस तरह संगीतकार का नाम लिखा जाता है, उसी तरह गीतकार का भी नाम लिखा जाए, नहीं तो मैं गीत नहीं लिखूंगा|
हम आज भी साहिर जी की अनेक फिल्मी और गैर-फिल्मी रचनाओं को गुनगुनाते थे| जहां ताजमहल को लेकर अनेक मुहब्बत के गीत लिखे गए हैं और कवि-शायरों ने उसे मुहब्बत की निशानी बताया है, वहीं साहिर साहब ने लिखा है-‘एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक|
आज की यह रचना भी हमें हिम्मत न हारने और हौसला बनाए रखने की प्रेरणा देती है-
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो, कठिन सही तेरी मंजिल मगर उदास न हो|
कदम कदम पे चट्टानें खडी़ रहें लेकिन, जो चल निकले हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते| हवाएँ कितना भी टकराएँ आँधियाँ बनकर मगर घटाओं के परचम कभी नहीं झुकते| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…
हर एक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं मगर, हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है| हजारों चाँद सितारों का खून होता है, तब एक सुबह फ़िजाओं पे मुस्कुराती है| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…
जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते, वो जिंदगी में नया रंग ला नहीं सकते| जो रास्ते के अँधेरों से हार जाते हैं, वो मंजिलों के उजाले को पा नहीं सकते| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…
लीजिए आज प्रस्तुत है, स्वर्गीय रामावतार त्यागी जी का लिखा एक सुंदर गीत| रामावतार त्यागी जी किसी समय हिन्दी कवि सम्मेलनों में गूंजने वाला एक प्रमुख स्वर हुआ करते थे| यह गीत भी उनकी रचनाशीलता का एक उदाहरण है-
मैं तो तोड़ मोह के बंधन अपने गाँव चला जाऊँगा, तुम आकर्षक सम्बन्धों का, आँचल बुनते रह जाओगे|
मेला काफी दर्शनीय है पर मुझको कुछ जमा नहीं है, इन मोहक कागजी खिलौनों में मेरा मन रमा नहीं है|
मैं तो रंगमंच से अपने अनुभव गाकर उठ जाऊँगा, लेकिन, तुम बैठे गीतों का गुँजन सुनते रह जाओगे|
आँसू नहीं फला करते हैं रोने वाले क्यों रोता है? जीवन से पहले पीड़ा का, शायद अंत नहीं होता है|
मैं तो किसी सर्द मौसम की बाँहों में मुरझा जाऊँगा, तुम केवल मेरे फूलों को गुमसुम चुनते रह जाओगे|
मुझको मोह जोड़ना होगा केवल जलती चिंगारी से, मुझसे संधि नहीं हो पाती जीवन की हर लाचारी से|
मैं तो किसी भँवर के कंधे चढकर पार उतर जाऊँगा, तट पर बैठे इसी तरह से तुम सिर धुनते रह जाओगे|
आज मैं हिन्दी हास्य कविता के एक अनूठे हस्ताक्षर स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ| आदित्य जी निर्मल हास्य सृजित करने में माहिर थे| कभी उन्होंने छंद को नहीं छोड़ा और कभी किसी फूहड़ अभिव्यक्ति का सहारा नहीं लिया| मेरा सौभाग्य है कि मुझे कई बार उनको अपने आयोजनों में बुलाने और उनको सुनने का अवसर मिला| पिछले दिनों किसी कवि से यह भी जानने को मिला था कि जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधान मंत्री थे, तब वे कभी कभी आदित्य जी को अपनी नई कविताएं सुनाकर उनकी राय लेते थे|
यह कविता भी आज की आधुनिकता पर एक मीठा व्यंग्य करती है| यह कविता काफी लंबी थी, इसका कुछ भाग मैं दे रहा हूँ| लीजिए इस कविता का आनंद लीजिए-
सांझ हुई दिन बीत गया, दिन हारा तम जीत गया। मन सपनों के महक उठे, तरुओं पर खग चहक उठे। एक नीम के तरुवर पर, बैठे थे दो खग सुन्दर। एक डाल पर मैना थी, मैना सूर्य उदयना थी। स्वर्ण नीड़ में लेटी थी, ऊँचे घर की बेटी थी।
अंग्रेजी में गाती थी, हिंदी में शर्माती थी। इंग्लिश उसकी अच्छी थी, किसी मेम की बच्ची थी। उसी डाल पर तोता था, बैठा बैठा रोता था। तोता भोला भाला था, नीली कंठी वाला था। वो हिंदी में अच्छा था, निर्धन घर का बच्चा था।
मौसम कुछ कुछ सर्द हुआ, हमदर्दी का दर्द हुआ। मैना बोली हाउ डू यू डू, तोता बोला व्याकुल हूँ। उड़ कर ऊपर जाता हूँ, फिर नीचे आ जाता हूँ। जब नीचे आ जाता हूँ , फिर ऊपर उड़ जाता हूँ। कोई निश्चित पंथ नहीं, पथ का कोई अंत नहीं। सपनों की जलती होली, मिस मैना हंस कर बोली। मिस्टर तोते थिंकर हो, लगता है तुम किंकर हो।
तोता बोला हे चपले, विरल जनम में हरि जप ले। मैना बोली हे साधो, तुम हो मिट्टी के माधो। बूढ़े होकर हरि जपना, जंगल में जाकर तपना। तोता बोला गूढ़ गते, भज गोविंदम मूढ़ मते। मैना बोली यंग हो तुम, लेकिन दिल से तंग हो तुम।
उड़े इंडिया गेट गए, हरी घास पर लेट गए। शीतल मंद सुवात चली, कम्पित करती गात चली। रस की भीनी रात चली, और लव मैरिज की बात चली। मैना बोली यू लव मी? तोता बोला तू लव मी। मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ, अपने कुल में जेठा हूँ। तू किस कुल की बाला है? किसने तुझको पाला है?
मैं हूँ अग्निहोत्रवता, क्या है तेरा गोत्र बता? मैना ने महसूस किया, कुल को इंट्रोड्यूस किया। मम्मी मेरी कोर्ट गयी, लेकर डाईवोर्स गयी। भाग हमारे तले गए, डैडी मेरे चले गए। डिग्री लेने लन्दन में, सेंट मिलाने चन्दन में।
तोता बोला हे मीते, नूतन युग की नवनीते। मेरा कुल तो कच्चा है, तेरा ही कुल अच्छा है। हम गठबंधन जोड़ेंगे, हर बंधन को तोड़ेंगे। कुसुम कली सी खिलना कल, आठ बजे फिर मिलना कल।
दूजे दिन का किस्सा है, लव का अंतिम हिस्सा है। रख दिल पर पत्थर तोता, नैनों में जल भर तोता। दो घंटे से खड़ा हुआ, एक डाल में पड़ा हुआ। देख रहा था इधर उधर, हाय ये मैना गयी किधर। तभी किसी का कोमल सर, आ टिका तोते के कंधे पर।
ओ माई डीयर आई हैव कम, तोता बोला ओ निर्मम। तेरी प्रणय प्रतीक्षा में, बैठ स्कूटर रिक्शा में। सब सड़कों का भ्रमण किया, दोपहरी तक रमण किया। कहीं न तेरे चिन्ह मिले, सब चौराहे खिन्न मिले। मुझसे दंभ किया तूने, बहुत विलम्ब किया तूने।
मैना हँस के ख़ुदक गई, दो फुट पीछे फुदक गयी। कितने इनोसेंट हो तुम, बुद्धू सौ परसेंट हो तुम। कच्चे हो लव नॉलेज में, क्या पढ़ते हो कॉलेज में। हँस दी मैना यू नॉटी, तोते को च्योंटी काटी।
मैं हूँ व्हिस्की तुम हो रम, तोता बोला सुन्दरतम। मैना कुछ आगे सरकी, तोते की बाहें फड़की। पाँखों से टच पाँख हुई, सभी इन्द्रियाँ आँख हुईं। तोता मन में फूल गया, हिंदी पढना भूल गया। तोता बोला यू लवली, सुन्दरता की एक कली। दिल पर चलती ट्रेन हो तुम, मीठा मीठा पेन हो तुम।
ब्यूटी में भी बीट हो तुम, आय हाय कितनी स्वीट हो तुम। मैं दिल्ली का तोता हूँ, कनाट प्लेस में रोता हूँ। तुम हो पेरिस की बुलबुल, मैना बोली वंडरफुल। हिंदी इंग्लिश एक हुए, जब दो पंजे शेक हुए। हिंदी जब अंग्रेज़ हुई, दिल की धड़कन तेज हुई।
कल्चर देकर कर्ज़े में, बैठ विदेशी दर्जे में। वे दो आँसू लूट गए, भाग देश के फूट गए। आओ हम सब ध्यान करें, मिल कर यह गुणगान करें। आई लव यू एंड यू लव मी, या मैं लव तू एंड तू लव मी।
आज गुलज़ार साहब की एक नज़्म शेयर कर रहा हूँ, जो उनके संकलन यार जुलाहे से ली गई है| गुलज़ार शायरी, रंगमंच और फिल्मों की दुनिया का जाना-माना नाम है| वे विशेष रूप से शायरी में एक्सपेरीमेंट के लिए जाने जाते हैं|
यह नज़्म भी कुछ अलग तरह की है| गुलज़ार साहब के संकलन ‘यार जुलाहे’ से लीजिए प्रस्तुत है ये नज़्म-
वो जो शायर था चुप सा रहता था बहकी-बहकी सी बातें करता था, आँखें कानों पे रख के सुनता था गूंगी ख़ामोशियों की आवाज़ें|
जमा करता था चाँद के साए, गीली-गीली सी नूर की बूंदें ओक़ में भर के खड़खड़ाता था|
रूखे-रूखे से रात के पत्ते वक़्त के इस घनेरे जंगल में, कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था|
हाँ वही वो अजीब सा शायर रात को उठ के कोहनियों के बल चाँद की ठोडी चूमा करता था|
चाँद से गिर के मर गया है वो, लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है|