हिन्दी के गीत- कविता संसार के एक और अनमोल रत्न स्वर्गीय रमानाथ अवस्थी जी को आज याद कर रहा हूँ| पहले भी इनके कुछ गीत मैंने शेयर किए है| भावुकता का अजीब संसार होता है इन लोगों के पास, जिसमें ये जीते हैं और अपनी अनूठी अनुभूतियों से हमें परिचित कराते हैं|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रमानाथ अवस्थी जी का यह गीत-

प्यार से मुझको बुलाओगे जहां, एक क्या सौ बार आऊँगा वहां|
पूछने की है नहीं फ़ुर्सत मुझे,
कौन हो तुम क्या तुम्हारा नाम है|
किसलिए मुझको बुलाते हो कहां,
कौन सा मुझसे तुम्हारा काम है|
फूल से तुम मुस्कुराओगे जहाँ,
मैं भ्रमर सा गुनगुनाऊँगा वहां|
कौन मुझको क्या समझता है यहां,
आज तक इस पर कभी सोचा नहीं|
आदमी मेरे लिए सबसे बड़ा,
स्वर्ग में या नरक में वह हो कहीं|
आदमी को तुम झुकाओगे जहां,
प्राण की बाजी लगाऊँगा वहां|
जानता हूँ एक दिन मैं फूल-सा,
टूट जाऊँगा बिखरने के लिए|
फिर न आऊंगा तुम्हारे रूप की,
रौशनी में स्नान करने के लिए|
किन्तु तुम मुझको भुलाओगे जहां,
याद अपनी मैं दिलाऊँगा वहां|
मैं नहीं कहता कि तुम मुझको मिलो,
और मिलकर दूर फिर जाओ चले|
चाहता हूँ मैं तुम्हें देखा करूं,
बादलों से दूर जा नभ के तले|
सर उठाकर तुम झुकाओगे जहां,
बूंद बन-बन टूट जाऊँगा वहां|
आज के लिए इतना ही, नमस्कार|
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