
मुझसे करते हैं “क़तील” इसलिये कुछ लोग हसद,
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मुझसे करते हैं “क़तील” इसलिये कुछ लोग हसद,
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में|
क़तील शिफ़ाई
हमको आपस में मुहब्बत नहीं करने देते,
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में|
क़तील शिफ़ाई
वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा,
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में|
क़तील शिफ़ाई
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है,
उसको दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में|
क़तील शिफ़ाई
हौसला किसमें है यूसुफ़ की ख़रीदारी का,
अब तो महंगाई के चर्चे हैं ज़ुलैख़ाओं में|
क़तील शिफ़ाई
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज,
बंट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं में|
क़तील शिफ़ाई
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थाके-हारे हो,
धूप की तुम तो मिलावट न करो छाँव में|
क़तील शिफ़ाई
उनको भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश,
बूँद तक बो न सके जो कभी सहराओं में|
क़तील शिफ़ाई
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में,
हमने ख़ुश होके भँवर बांध लिये पाँवों में|
क़तील शिफ़ाई
तुम तो शायर हो “क़तील” और वो इक आम सा शख़्स,
उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं|
क़तील शिफ़ाई