
ज़माना देख चुका है परख चुका है इसे,
‘क़तील’ जान से जाए पर इल्तिजा न करे|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़माना देख चुका है परख चुका है इसे,
‘क़तील’ जान से जाए पर इल्तिजा न करे|
क़तील शिफ़ाई
बुझा दिया है नसीबों ने मेरे प्यार का चाँद। ,
कोई दिया मिरी पलकों पे अब जला न करे|
क़तील शिफ़ाई
अगर वफ़ा पे भरोसा रहे न दुनिया को,
तो कोई शख़्स मोहब्बत का हौसला न करे|
क़तील शिफ़ाई
सुना है उसको मोहब्बत दुआएँ देती है,
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे|
क़तील शिफ़ाई
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में,
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे|
क़तील शिफ़ाई
रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बनकर,
ये और बात मिरी ज़िंदगी वफ़ा न करे|
क़तील शिफ़ाई
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे,
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे|
क़तील शिफ़ाई
नहीं सिर्फ़ ‘क़तील’ की बात यहाँ कहीं ‘साहिर’ है कहीं ‘आली’ है,
तुम अपने पुराने यारों से दामन न छुड़ाओ इंशा-जी|
क़तील शिफ़ाई
क्या सोच के तुम ने सींची थी ये केसर क्यारी चाहत की,
तुम जिनको हँसाने आए थे उनको न रुलाओ इंशा-जी|
क़तील शिफ़ाई
जितने भी यहाँ के बासी हैं सब के सब तुमसे प्यार करें,
क्या उनसे भी मुँह फेरोगे ये ज़ुल्म न ढाओ इंशा-जी|
क़तील शिफ़ाई