
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही,
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही,
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ|
राहत इन्दौरी
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की,
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ|
राहत इन्दौरी
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है,
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूँ|
राहत इन्दौरी
मुझे बुतों से इजाज़त अगर कभी मिल जाए,
तो शहर-भर के ख़ुदाओं को बे-नक़ाब करूँ|
राहत इन्दौरी
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ,
मैं चाहता था चराग़ों को आफ़्ताब करूँ|
राहत इन्दौरी
मुझे अब देख कर हँसती है दुनिया,
मैं सबके सामने रोने लगा था|
राहत इन्दौरी
वो अब आईने धोता फिर रहा है,
उसे चेहरे पे शक होने लगा था|
राहत इन्दौरी
चुराता हूँ अब आँखें आइनों से,
ख़ुदा का सामना होने लगा था|
राहत इन्दौरी
लगे रहते थे सब दरवाज़े फिर भी,
मैं आँखें खोल कर सोने लगा था|
राहत इन्दौरी
वो इक इक बात पे रोने लगा था,
समुंदर आबरू खोने लगा था|
राहत इन्दौरी