
बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है,
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है,
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं|
राहत इन्दौरी
बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला,
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं|
राहत इन्दौरी
हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र,
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं|
राहत इन्दौरी
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं,
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं|
राहत इन्दौरी
और क़यामत मेरे चराग़ों पर टूटी,
झगड़ा चाँद-सितारों का है मौला खैर|
राहत इन्दौरी
दुनिया से बाहर भी निकलकर देख चुके,
सब कुछ दुनियादारों का है मौला खैर|
राहत इन्दौरी
इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर,
साया रिश्तेदारों का है मौला खैर|
राहत इन्दौरी
दुश्मन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार,
सामना अबके यारों का है मौला खैर|
राहत इन्दौरी
सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर,
और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर|
राहत इन्दौरी
इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे है,
जो मस्जिदों में सफारी पहन के आते हैं।
राहत इन्दौरी