बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ! ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगी,बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ| कैफ़ भोपाली Share this:FacebookTwitterMoreTelegramLike this:Like Loading...