
मिरी ग़ज़ल में किसी बेवफ़ा का ज़िक्र न था,
न जाने कैसे तिरा तज़्किरा निकल आया|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मिरी ग़ज़ल में किसी बेवफ़ा का ज़िक्र न था,
न जाने कैसे तिरा तज़्किरा निकल आया|
राजेश रेड्डी
दुआ सलाम से आगे जो थोड़ी बात बढ़ी,
जो उसका दुख था वही दुख मिरा निकल आया|
राजेश रेड्डी
बढ़े कुछ इस तरह दोनों ही दोस्ती की तरफ़,
कि दरमियाँ में नया फ़ासला निकल आया|
राजेश रेड्डी
ये मेरा अक्स है या और है कोई मुझ में,
कि जिसका क़द मिरे क़द से बड़ा निकल आया|
राजेश रेड्डी
कुछ आज अश्कों की लज़्ज़त नई नई सी है,
पुराने ग़म का नया ज़ाइक़ा निकल आया|
राजेश रेड्डी
इक और नाम जुड़ा दुश्मनों के नामों में,
इक और दोस्त मिरा आईना निकल आया|
राजेश रेड्डी
दुखों की झाड़ियाँ उगती चली गईं दिल में,
हर एक झाड़ी से जंगल घना निकल आया|
राजेश रेड्डी
मेरे ही नाम की तख़्ती लगी थी जिस दर पर,
वो जब खुला तो किसी और का निकल आया|
राजेश रेड्डी
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया,
भटक गया तो नया रास्ता निकल आया|
राजेश रेड्डी
औरों जैसे और न जाने कितने हैं,
कोई कहाँ है लेकिन मेरे जैसा और|
राजेश रेड्डी