आज एक बार फिर मैं अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक और गीत शेयर कर रहा हूँ| मजे की बात ये है कि यह गीत भी 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘दीवाना’ से ही है- यह गीत लिखा है हसरत जयपुरी जी ने और इसका मधुर संगीत तैयार किया है- शंकर जयकिशन की संगीतमय जोड़ी ने|
इस एक ही फिल्म का यह पाँचवाँ गीत है, जो मैं शेयर कर रहा हूँ| असल में यह इस फिल्म का ‘थीम सांग’ है| ये एक तरह से सादगी का सेलीब्रेशन है| जैसे कहा जाए की हम सरल, सिंपल हैं और हमें इस पर गर्व है!
अब बिना और भूमिका बनाए, लीजिए प्रस्तुत है यह मधुर गीत-
दिवाना मुझको लोग कहें, मैं समझूँ जग है दिवाना, ओ मैं समझूँ जग है दिवाना, दिवाना मुझको लोग कहें|
हँसता है कोई सूरत पे मेरी, हँसता है कोई हालत पे मेरी, छोटा ही सही, पर दिल है बड़ा, मैं झूमता पैमाना|
मैं इंसां सीधा-साधा हूँ, ईमान का मैं शहजादा हूँ, है कौन बुरा मालिक जाने, मैं प्यार का परवाना|
मैं यार की खातिर लुट जाऊँ, और प्यार की खातिर मिट जाऊँ, चलता ही रहूँ, हर मंज़िल तक, अंजाम से बेगाना|
दीवाना मुझको लोग कहें, मैं समझूँ जग है दीवाना, ओ मैं समझूँ जग है दीवाना, दिवाना मुझको लोग कहें|
आज एक बार फिर मैं अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक और गीत शेयर कर रहा हूँ| मजे की बात ये है कि यह गीत भी 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘दीवाना’ से ही है- यह गीत लिखा है हसरत जयपुरी जी ने और इसका मधुर संगीत तैयार किया है- शंकर जयकिशन की संगीतमय जोड़ी ने|
एक ही फिल्म का यह चौथा गीत है, जो मैं शेयर कर रहा हूँ| कैसा दिव्य समय था वह, बहुत सी फिल्मों के सभी गाने हिट होते थे, और यह फिल्म भी ऐसी ही थी और सभी गाने मुकेश जी के गाये हुए|
अब बिना और भूमिका बनाए, लीजिए प्रस्तुत है यह मधुर गीत-
तारों से प्यारे दिल के इशारे, प्यासे है अरमां आ मेरे प्यारे, आना ही होगा तुझे आना ही होगा आना ही होगा|
दिल तुझे याद करे और फ़रियाद करे, पेड़ों की छाँव तले तेरा इंतज़ार करे, साँझ-सकारे दिल ये पुकारे, प्यासे है अरमां आ मेरे प्यारे| आना ही होगा, तुझे आना हो होगा, आना ही होगा|
हाल-ए-दिल जान ले तू, हमको पहचान ले तू, हम कोई गैर नहीं बात ये मान ले तू, बात ये मान ले तू| हम हैं बेचारे, किस्मत के मारे, प्यासे है अरमां आ मेरे प्यारे|
तारों से प्यारे दिल के इशारे| प्यासे हैं अरमां आ मेरे प्यारे, आना ही होगा तुझे आना हो होगा आना ही होगा|
लीजिए आज एक बार फिर मैं अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक और अमर गीत शेयर कर रहा हूँ| यह गीत भी 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘दीवाना’ से ही है- यह गीत लिखा है शैलेंद्र जी ने और इसका मधुर संगीत तैयार किया है- शंकर जयकिशन की संगीतमय जोड़ी ने|
पिछले गीत की तरह इस गीत में भी, सीधे-सादे सरल हृदय लेकिन प्रेम से भरपूर देहाती व्यक्ति के मनोभावों को बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया गया है|
एक बात और, आजकल मैनेजमेंट गुरू लोगों को ‘विन-विन’ का पाठ बड़े ग्राफिक्स के साथ और लंबी-चौड़ी व्याख्या करते हुए समझाते हैं, इस गीत में इस सिद्धान्त को बड़ी सरल भाषा में व्यक्त कर दिया गया है|
लीजिए प्रस्तुत है यह मधुर गीत-
तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय न तुम हारे, न हम हारे| सफ़र साथ जितना था, हो ही गया तय न तुम हारे, न हम हारे| तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय|
याद के फूल को हम तो अपने, दिल से रहेंगे लगाए, और तुम भी हँस लेना जब ये, दीवाना याद आए, मिलेंगे जो फिर से मिला दें सितारे| न तुम हारे, न हम हारे| तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय|
वक़्त कहाँ रुकता है तो फिर, तुम कैसे रुक जाते चाँद छुआ है आख़िर किसने, हम ही क्यूँ हाथ बढ़ाते जो उस पार हो तुम, तो हम इस किनारे, न तुम हारे, न हम हारे| तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय|
था तो बहुत कहने को लेकिन, अब तो चुप बेहतर है, ये दुनिया है एक सराय, जीवन एक सफ़र है, रुका भी है कोई किसीके पुकारे| न तुम हारे, न हम हारे|
लीजिए एक बार फिर मैं अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक और अमर गीत शेयर कर रहा हूँ| यह गीत है 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘दीवाना’ से, गीत को लिखा है- हसरत जयपुरी जी ने और इसका मधुर संगीत तैयार किया है- शंकर जयकिशन की संगीतमय जोड़ी ने|
सीधे-सादे, सरल हृदय लेकिन प्रेम से भरपूर देहाती व्यक्ति के मनोभावों को इस गीत में बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है|
लीजिए प्रस्तुत है यह मधुर गीत-
ऐ सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है; उसी मालिक ने मुझे भी तो मोहब्बत दी है|
फूल उठा ले तो कलाई में लचक आ जाए, तुझ हसीना को खुदा ने वो नज़ाकत दी है| मैं जिसे प्यार से छू लूं वही हो जाए मेरा, उसी मालिक ने मुझे भी तो मोहब्बत दी है|
मैं गुज़रता ही गया तेरी हसीं राहों से एक तेरे नाम ने क्या क्या मुझे हिम्मत दी है| मेरे दिल को भी ज़रा देख कहाँ तक हूँ मैं उसी मालिक ने मुझे भी तो मोहब्बत दी है|
तू अगर चाहे तो दुनिया को नचा दे ज़ालिम चाल दी है तुझे मालिक ने क़यामत दी है| मैं अगर चाहूं तो पत्थर को बना दूं पानी, उसी मालिक ने मुझे भी तो मोहब्बत दी है|
ऐ सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है, उसी मालिक ने मुझे भी तो मोहब्बत दी है|
काफी दिन से मैंने अपने प्रिय गायक मुकेश जी का कोई गीत शेयर नहीं किया था, आज कर लेता हूँ| जी हाँ ये गीत है 1958 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘परवरिश’ का, गीत लिखा है- हसरत जयपुरी जी ने और इसका संगीत दिया है- दत्ताराम जी ने| इस फिल्म के नायक थे मेरे प्रिय अभिनेता और महान शोमैन- राज कपूर जी|
जैसा मैंने कल भी लिखा था गीत-कविता आदि में, छोटे से कलेवर में बहुत बड़ी बात कह दी जाती है| यह लेखक की कलाकारी है, लेकिन जब इसमें अच्छा संगीत जुड़ता है और मुकेश जी जैसे महान गायक की आवाज़ जुड़ जाती है, तब छोते से, मात्र दो अंतरों के इस गीत का फैलाव, इसका आयाम कितना बड़ा हो जाता है, यह सिर्फ अनुभव से ही जाना जा सकता है|
लीजिए प्रस्तुत है यह अमर गीत-
आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं|
वादे भुला दें क़सम तोड़ दें वो, हालत पे अपनी हमें छोड़ दें वो| ऐसे जहाँ से क्यूँ हम दिल लगाएं, कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं|
बरबादियों की अजब दास्तां हूं, शबनम भी रोये मैं वह आस्माँ हूं| उन्हें घर मुबारक हमें अपनी आहें|
आज फिर से पुराने ब्लॉग का दिन है, लीजिए प्रस्तुत है एक और पुरानी ब्लॉग पोस्ट-
आज ऐसे ही, गीतकार शैलेंद्र जी की याद आ गई। मुझे ये बहुत मुश्किल लगता है कि किसी की जन्मतिथि अथवा पुण्यतिथि का इंतज़ार करूं और तब उसको याद करूं।
मैंने कहीं पढ़ा था कि शैलेंद्र जी इप्टा से जुड़े थे और वहीं किसी नाटक के मंचन के समय पृथ्वीराज कपूर जी उनसे मिले, बताया कि उनके बेटे राज कपूर अपनी पहली फिल्म बनाने वाले हैं और उनसे फिल्म में गीत लिखने का अनुरोध किया।
शैलेंद्र उस समय अपनी विचारधारा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और उन्होंने कहा कि वे फिल्म के लिए गीत नहीं लिखेंगे। पृथ्वीराज जी ने उनसे कहा कि जब उनका मन हो तब वे आकर मिल लें, अगर वे आएंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा। इत्तफाक़ से वह घड़ी बहुत जल्द आ गई और हमारी फिल्मों को शैलेंद्र जैसा महान गीतकार मिल गया।
सिर्फ इतना ही नहीं, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, मुकेश, शंकर जयकिशन का राजकपूर के साथ मिलकर एक ऐसा समूह बना, जिसने हमारी फिल्मों अनेक अविस्मरणीय गीत दिए, जिनमें सिर्फ महान विचार और भावनाएं नहीं अपितु आत्मा धड़कती है। संगीतकार के तौर पर इस समूह में कल्याण जी-आनंद जी और शायद लक्ष्मीकांत प्यारे लाल भी जुड़े। कुछ ऐसा संयोग बन गया कि शैलेंद्र अथवा हसरत गीत लिखेंगे, शंकर जयकिशन उसका संगीत देंगे, मुकेश उसके पुरुष कंठ होंगे और पर्दे पर पर राज कपूर की प्रस्तुति इस सभी का संयोग बनकर वह गीत अमर बन जाएगा-
तुम जो हमारे मीत न होते गीत ये मेरे- गीत न होते।
तुम जो न सुनते, क्यों गाता मैं, दर्द से घुट कर रह जाता मैं। सूनी डगर का एक सितारा- झिलमिल झिलमिल रूप तुम्हारा।
एक बहुत बड़ी शृंखला है ऐसे गीतों की, जिनमें बहुत गहरी बात को बड़ी सादगी से कह दिया गया है। नशे का गीत है तो उसमें भी बड़ी सरलता से फिलॉसफी कह दी गई है-
मुझको यारो माफ करना, मैं नशे में हूँ- कल की यादें मिट चुकी हैं, दर्द भी है कम अब जरा आराम से आ-जा रहा है दम, कम है अब दिल का तड़पना, मैं नशे में हूँ।
है जरा सी बात और छलके हैं कुछ प्याले, पर न जाने क्या कहेंगे, ये जहाँ वाले, तुम बस इतना याद रखना, मैं नशे में हूँ।
शराबियों से ही जुड़ी एक और बात, वो रोज तौबा करते हैं और रोज भूल जाते हैं, इन बातों को इस गीत में कितनी खूबसूरती से कहा गया है-
याद आई आधी रात को, कल रात की तौबा, दिल पूछता है झूम के, किस बात की तौबा!
जीने भी न देंगे मुझे, दुश्मन मेरी जां के, हर बात पे कहते हैं कि- इस बात की तौबा!
बातों में वफा और वो मर मिटने की कस्में, क्या दौर था, उस दौर के जज़्बात की तौबा।
और फिर सादगी और मानवीयता के दर्शन से भरे ये गीत-
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार- जीना इसी का नाम है।
रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का, जिंदा है हमीं से नाम प्यार का|
किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे, मर के भी किसी को याद आएंगे, कहेगा फूल हर कली से बार-बार जीना इसी का नाम है।
या फिर-
इन काली सदियों के सिर से, जब रात का आंचल ढ़लकेगा, जब दुख के बादल छिटकेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा, जब अंबर झूमके नाचेगा, जब धरती नगमे गाएगी- वो सुबह कभी तो आएगी।
एक और-
जेबें हैं अपनी खाली, क्यों देता वर्ना गाली, ये संतरी हमारा, ये पासबां हमारा।
चीन-ओ-अरब हमारा, हिंदोस्तां हमारा, रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा।
और अंत में-
तुम्हारे महल- चौबारे, यहीं रह जाएंगे सारे, अकड़ किस बात की प्यारे, ये सर फिर भी झुकाना है।
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है, न हाथी है न घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है।
ये सब मैंने कहा, कवि शैलेंद्र जी को याद करके, हालांकि मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि जिन गीतों की पंक्तियां मैंने यहाँ लिखी हैं, उनमें कौन सा गीत शैलेंद्र जी का है, कौन सा नहीं, लेकिन इतना ज़रूर है कि ये सभी गीत उसी परंपरा के हैं, जिसके शैलेंद्र जी प्रतिनिधि थे। हाँ इन सभी गीतों को मुकेश जी ने अपनी सीधे दिल में उतर जाने वाली आवाज़ दी है।
मुझे नहीं मालूम कि आपको यह आलेख कैसा लगेगा, लेकिन मुझे इस सफर से गुज़रकर बहुत अच्छा लगा और आगे भी जब मौका मिलेगा, मैं इस प्रकार की बातें करता रहूंगा। हर गीत की कुछ पंक्तियां लिखने के बाद मुझे लगा है कि जो पंक्तियां मैंने यहाँ नहीं दी हैं, उनको लिखता तो और अच्छा रहता। इन अमर गीतों की कुछ पंक्तियों के बहाने मैं शैलेंद्र जी को और इन गीतों से जुड़े सभी महान सर्जकों, कलाकारों को याद करता हूँ।
मेरे महबूब, मेरे दोस्त, नहीं ये भी नहीं मेरी बेबाक तबीयत का तकाज़ा है कुछ और।
हाँ मैं दीवाना हूँ चाहूँ तो मचल सकता हूँ, खिलवत-ए-हुस्न के कानून बदल सकता हूँ, खार तो खार हैं, अंगारों पे चल सकता हूँ, मेरे महबूब, मेरे दोस्त, नहीं ये भी नहीं मेरी बेबाक तबीयत का तकाज़ा है कुछ और।
इस गीत में आगे भी कुछ अच्छी पंक्तियां हैं, लेकिन इतना ही शेयर करूंगा क्योंकि इतना हिस्सा सभी को आसानी से समझ में आ सकता है। कुल मिलाकर हर कोई यह बताना चाहता है कि मेरी कुछ अलग फिलॉसफी है ज़िंदगी की, अलग सिद्धांत हैं और खुद्दारी है, जो मेरी पहचान है, लेकिन अपने सिद्धांतों के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।
अपनी बात कहने के लिए, कोई माकूल माध्यम और बहाना चाहिए। राजकपूर जी को फिल्म का माध्यम अच्छा लगता था, खानदानी दखल भी था उस माध्यम में, क्योंकि पिता पृथ्वीराज कपूर प्रसिद्ध रंगकर्मी और सिने कलाकार थे, सो राजकपूर जी ने फिल्म का माध्यम अपनाया, लेकिन कही वही अपनी बात, अपनी पसंदीदा फिलॉसफी को पर्दे पर अभिव्यक्त किया, यहाँ तक कि जेबकतरे का काम कर रहे नायक से भी यही कहलवाया-
मैं हूँ गरीबों का शहज़ादा, जो चाहूं वो ले लूं, शहज़ादे तलवार से खेले, मैं अश्कों से खेलूं।
लेकिन इससे भी पहले वो कहते हैं-
देखो लोगों जरा तो सोचो, बनी कहानी कैसे, तुमने मेरी रोटी छीनी, मैंने छीने पैसे,
सीख़ा तुमसे काम, हो गया मैं बदनाम, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको मेरा सलाम, छलिया मेरा नाम।
मेरा ब्लॉग, मेरा प्लेटफॉर्म है, मेरी फिल्म है, मेरा नाटक है। मैं अपनी बात इसी तरह कहूंगा, कभी आज की बात का ज़िक्र करके, कभी अतीत की किसी घटना, किसी धरोहर को याद करके।
जाते-जाते एक और गीत याद आ रहा है-
जब गम-ए-इश्क़ सताता है तो हंस लेता हूँ, हादसा याद जब आता है तो हंस लेता हूँ।
मेरी उजड़ी हुई दुनिया में तमन्ना का चिराग जब कोई आ के जलाता है तो हंस लेता हूँ।
कोई दावा नहीं, फरियाद नहीं, तंज़ नहीं, रहम जब अपने पे आता है तो हंस लेता हूँ।