
अकेली शाम बहुत जी उदास करती है,
किसी को भेज कोई मेरा हमनवा कर दे|
राना सहरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अकेली शाम बहुत जी उदास करती है,
किसी को भेज कोई मेरा हमनवा कर दे|
राना सहरी
मैं उस के जोर को देखूँ वो मेरा सब्र-ओ-सुकूँ,
मुझे चराग़ बना दे उसे हवा कर दे|
राना सहरी
ये रेत्ज़ार कहीं ख़त्म ही नहीं होता,
ज़रा सी दूर तो रस्ता हरा भरा कर दे|
राना सहरी
है इख़्तियार में तेरे तो मोजेज़ा कर दे,
वो शख़्स मेरा नहीं है उसे मेरा कर दे|
राना सहरी
कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह|
राना सहरी
मैंने ख़ुशबू की तरह तुझ को किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह|
राना सहरी
मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह|
राना सहरी
कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह|
राना सहरी