
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा,
हम तिरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
आसमान धुनिए के छप्पर सा
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा,
हम तिरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश