
अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों,
और जब ऐसा किया मैंने तो शरमाया नहीं|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों,
और जब ऐसा किया मैंने तो शरमाया नहीं|
वसीम बरेलवी
बीते रिश्ते तलाश करती है,
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है|
गुलज़ार
जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन,
जो खो गया उसे भी मकान में रखना |
निदा फ़ाज़ली
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी,
हम जिसके भी करीब रहे, दूर ही रहे।
निदा फ़ाज़ली
इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया,
इक वो दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं|
जावेद अख़्तर
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं,
कौन दुख झेले आज़माए कौन|
जावेद अख़्तर
यह तेरी काँवर नहीं कर्तव्य का अहसास है,
अपने कंधे से श्रवण! संबंध का काँवर न फेंक|
कुंवर बेचैन
रिश्ते गुज़र रहे हैं लिए दिन में बत्तियाँ,
मैं बीसवीं सदी की अँधेरी सुरंग हूँ|
सूर्यभानु गुप्त
जावेद अख़्तर साहब भारतीय शायरों में और मुंबई के फिल्म जगत में एक जाना-माना नाम हैं| उन्होंने सलमान खान जी के पिता सलीम खान साहब के साथ मिलकर अनेक हिट फिल्मों की पटकथा भी लिखी थी, जिनमें सुपर हिट फिल्म ‘शोले’ भी शामिल थी, और हां फिल्मों में गीत तो वे लंबे समय से लिख ही रहे हैं, अपनी स्वतंत्र शायरी के अलावा|
लीजिए प्रस्तुत है जावेद अख़्तर साहब की यह ग़ज़ल –
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन|
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन|
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन|
अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन|
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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माना सहमी गलियों में न रहा जाएगा,
सांसों का भारीपन भी न सहा जाएगा,
किंतु विवशता है जब अपनों की बात चली,
कांपेंगे अधर और कुछ न कहा जाएगा।
किशन सरोज