
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो,
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो|
साहिर लुधियानवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो,
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो|
साहिर लुधियानवी
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया|
साहिर लुधियानवी
शाम-ए-फ़िराक़ आई तो दिल डूबने लगा,
हमको भी अपने आप पे कितना ग़ुरूर था|
मुनीर नियाज़ी
कोई अगर पूछता ये हमसे बताते हम गर तो क्या बताते,
भला हो सबका कि ये न पूछा कि दिल पे ऐसी ख़राश क्यूँ है|
जावेद अख़्तर
मुमकिन है जवाब दे उदासी,
दर अपना ही खटखटा रहा हूँ|
क़तील शिफ़ाई
नैरंग-ए-इश्क़ की है कोई इंतिहा कि ये,
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ|
फ़िराक़ गोरखपुरी
मोहब्बत चार दिन की और उदासी ज़िंदगी भर की,
यही सब देखता है और ‘कबीरा’ रोने लगता है|
वसीम बरेलवी
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए|
निदा फ़ाज़ली
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त,
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया|
साहिर लुधियानवी
चंद कलियाँ निशात की चुनकर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ,
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझसे मिल कर उदास रहता हूँ|
साहिर लुधियानवी