काहे दिया परदेस, टुकड़े को दिल के!

आज एक बार फिर मैं अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक और अमर गीत शेयर कर रहा हूँ| यह गीत है 1960 में रिलीज़ हुई फिल्म- ‘बंबई का बाबू’ से, गीत को लिखा है- मजरूह सुल्तानपुरी जी ने और इसका मधुर संगीत तैयार किया है- सचिन देव बर्मन जी ने|


हमारी फिल्मी दुनिया में समय के साथ अलग-अलग समूह बनते गए, जैसे राज कपूर जी और मनोज कुमार जी ने अपने लिए मुख्यतः मुकेश जी को चुना, वहीं देव आनंद जी ने , दिलीप कुमार जी ने अपने लिए – किशोर कुमार जी को और मोहम्मद रफी साहब को चुन लिया| लेकिन हम जानते हैं की दिलीप साहब की शुरू की फिल्मों के लिए मुकेश जी के गाये गीत अमर हैं, जैसे ‘ये मेरा दीवानापन है’, ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं’ आदि-आदि, वहीं आज का ये गीत भी मुकेश जी ने देव आनंद जी की फिल्म के लिए गाया है| विवाह के बाद कन्या की विदाई के माहौल पर शायद ही इससे अधिक सुंदर कोई और गीत होगा| लीजिए प्रस्तुत है यह मधुर गीत-



चल री सजनी अब क्या सोचे,
कजरा ना बह जाये रोते-रोते|


बाबुल पछताए हाथों को मल के
काहे दिया परदेस टुकड़े को दिल के,
आँसू लिये, सोच रहा, दूर खड़ा रे|
चल री सजनी…


ममता का आँगन, गुड़ियों का कंगना
छोटी बड़ी सखियाँ, घर गली अंगना,
छूट गया, छूट गया, छूट गया रे|
चल री सजनी…


दुल्हन बन के गोरी खड़ी है
कोई नही अपना कैसी घड़ी है,
कोई यहाँ, कोई वहाँ, कोई कहाँ रे|
चल री सजनी…


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|


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