
साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती,
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता|
गुलज़ार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती,
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता|
गुलज़ार
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता,
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी|
अहमद फ़राज़
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है,
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा |
बशीर बद्र