
दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही,
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही,
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया|
निदा फ़ाज़ली
अपना चेहरा निहार लें ऋतुएँ,
आईनों की तरह जड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता,
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई|
मुनव्वर राना
पोशाक बहारों ने बदली,
फूलों ने महकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
मैं मौसमों के जाल में जकड़ा हुआ दरख़्त,
उगने के साथ-साथ बिखरता रहा हूँ मैं|
निदा फ़ाज़ली
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में,
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में|
बशीर बद्र
कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह|
राना सहरी