
अब मिरे क़त्ल की तदबीर तो करनी होगी,
कौन सा राज़ है तेरा जो छुपा है मुझसे|
जाँ निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अब मिरे क़त्ल की तदबीर तो करनी होगी,
कौन सा राज़ है तेरा जो छुपा है मुझसे|
जाँ निसार अख़्तर
राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब,
दस्तक पे मिरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन|
अमजद इस्लाम अमजद
पहुँच जाती हैं दुश्मन तक हमारी ख़ुफ़िया बातें भी,
बताओ कौन सी कैंची लिफ़ाफ़ा काट जाती है|
बेकल उत्साही