
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता,
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता,
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं|
अहमद फ़राज़