
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले,
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले,
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थाके-हारे हो,
धूप की तुम तो मिलावट न करो छाँव में|
क़तील शिफ़ाई
प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं,
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं|
क़तील शिफ़ाई
सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी,
और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो,
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो|
शहरयार
अपने साये से चौंक जाते हैं,
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा|
गुलज़ार
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए|
दुष्यंत कुमार
उम्र भर अपने गरीबां से उलझने वाले,
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है|
मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे।
क़तील शिफ़ाई