
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता,
देखकर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है|
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता,
देखकर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है|
मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम,
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा ज़लाता क्या है|
उम्र भर अपने गरीबां से उलझने वाले,
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है|
पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको,
दूर से देखकर अब हाथ हिलाता क्या है|
मेरी रुसवाई में तू भी है बराबर का शरीक़,
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है|
अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है,
एक नज़र मेरी तरफ भी, तेरा जाता क्या है|