मगर इतना तो बता!

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता,
देखकर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है|

अब शम्मा ज़लाता क्या है!

मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम,
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा ज़लाता क्या है|

साये से डराता क्या है!

उम्र भर अपने गरीबां से उलझने वाले,
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है|

हाथ हिलाता क्या है!

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको,
दूर से देखकर अब हाथ हिलाता क्या है|

यारों को सुनाता क्या है!

मेरी रुसवाई में तू भी है बराबर का शरीक़,
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है|