
शैख़ जो है मस्जिद में, नंगा रात को था मय-ख़ाने में,
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ’म किया|
मीर तक़ी मीर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
शैख़ जो है मस्जिद में, नंगा रात को था मय-ख़ाने में,
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ’म किया|
मीर तक़ी मीर
झूम के जब रिंदों ने पिला दी,
शैख़ ने चुपके चुपके दुआ दी|
कैफ़ भोपाली
पीते तो हमने शैख़ को देखा नहीं मगर,
निकला जो मै-कदे से तो चेहरे पे नूर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’