
मुझपे अपना जुर्म साबित हो न हो लेकिन सुनो,
लोग कहते हैं कि उसको बेवफ़ा मैंने किया|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मुझपे अपना जुर्म साबित हो न हो लेकिन सुनो,
लोग कहते हैं कि उसको बेवफ़ा मैंने किया|
अहमद फ़राज़
वो ठहरता क्या कि गुजरा तक नहीं जिसके लिए,
घर तो घर, हर रास्ता, आरास्ता* मैंने किया|
*सजाया
अहमद फ़राज़
हो सजावारे-सजा क्यों जब मुकद्दर में मेरे,
जो भी उस जाने-जहाँ ने लिख दिया, मैंने किया|
अहमद फ़राज़
वो मेरी पहली मोहब्बत, वो मेरी पहली शिकस्त,
फिर तो पैमाने-वफ़ा सौ मर्तबा मैंने किया|
अहमद फ़राज़
कैसे नामानूस लफ़्ज़ों की कहानी था वो शख्स,
उसको कितनी मुश्किलों से तर्जुमा मैंने किया|
अहमद फ़राज़
संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया,
जबकि खुद पत्थर को बुत, बुत को खुदा मैंने किया|
अहमद फ़राज़
तुझे चाँद बन के मिला था जो, तेरे साहिलों पे खिला था जो,
वो था एक दरिया विसाल का, सो उतर गया उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
तो ये किसलिए शबे-हिज्र के उसे हर सितारे में देखना,
वो फ़लक कि जिसपे मिले थे हम, कोई और था उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
जो बिसाते-जाँ ही उलट गया, वो जो रास्ते से पलट गया,
उसे रोकने से हुसूल क्या? उसे भूल जा…उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
ये जो रात दिन का है खेल सा, उसे देख इसपे यकीं न कर,
नहीं अक्स कोई भी मुस्तक़िल सरे-आईना उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम