आज प्रस्तुत कर रहा हूँ ज़नाब शहजाद अहमद जी की एक खूबसूरत ग़ज़ल, इस गजल के कुछ शेर गुलाम अली साहब ने भी गाए हैं|

लीजिए प्रस्तुत है यह सुंदर ग़ज़ल –
अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है,
एक नज़र मेरी तरफ भी, तेरा जाता क्या है|
मेरी रुसवाई में तू भी है बराबर का शरीक़,
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है|
पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको,
दूर से देखकर अब हाथ हिलाता क्या है|
सफ़र-ए-शौक में क्यूँ कांपते हैं पाँव तेरे,
आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है|
उम्र भर अपने गरीबां से उलझने वाले,
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है|
मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम,
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा ज़लाता क्या है|
मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता,
देखकर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है|
तुझमें जो बल है तो दुनिया को बहाकर लेजा,
चाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है|
तेरी आवाज़ का जादू न चलेगा उन पर,
जागने वालो को ‘शहजाद’ जगाता क्या है|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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