
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो “शकील”,
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो “शकील”,
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
हाल-ए-दिल पूछने वाले तेरी दुनिया में कभी,
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
छुप के रोता हूँ तेरी याद में दुनिया भर से,
कब मेरी आँख से बरसात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी,
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है,
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है|
शकील बदायूँनी
ये अदा-ए-बेनियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक,
मगर ऐसी बेरुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे।
शकील बदायूँनी
नयी सुबह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है,
ये सहर भी रफ़्ता-रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे।
शकील बदायूँनी
मैं नज़र से पी रहा था कि ये दिल ने बददुआ दी,
तेरा हाथ ज़िंदगी-भर कभी जाम तक न पहुँचे।
शकील बदायूँनी
ग़मे-आशिक़ी से कह दो रहे–आम तक न पहुँचे,
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे।
शकील बदायूँनी
भारतीय फिल्म जगत के तीन प्रमुख पुरुष गायकों में से एक स्वर्गीय मोहम्मद रफी साहब का एक दर्द भरा गीत आज शेयर कर रहा हूँ| रफी-मुकेश-किशोर ये एक ऐसी त्रिवेणी थे जिसने भारतीय फिल्म संगीत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है| वैसे इनके अलावा भी मन्ना डे, हेमंत कुमार, स्वयं सचिन देव बर्मन जी आदि-आदि अनेक गायक थे|
आज मैं रफी साहब का एक प्रसिद्ध गीत शेयर कर रहा हूँ| रफी साहब की रेंज ऐसी लाजवाब थी जो उनको एक बहुत ऊंचा स्थान गायकी के क्षेत्र में दिलाती है|
लीजिए आज प्रस्तुत हैं इस रफी साहब का एक दर्द भरा गीत, जिसे फिल्म- ‘दो बदन’ के लिए शकील बदायुनी साहब ने लिखा था, रवि साहब ने इसका संगीत तैयार किया था और रफी साहब ने इस गीत में अपनी वाणी के माध्यम से भरपूर दर्द उंडेल दिया था, लीजिए प्रस्तुत हैं इस गीत के बोल:
रहा गर्दिशों में हरदम
मेरे इश्क़ का सितारा
कभी डगमगायी कश्ती,
कभी खो गया किनारा|
कोई दिल का खेल देखे,
कि मुहब्बतों की बाज़ी
वो क़दम क़दम पे जीते,
मैं क़दम क़दम पे हारा|
ये हमारी बदनसीबी
जो नहीं तो और क्या है
कि उसी के हो गये हम,
जो न हो सका हमारा|
पड़े जब ग़मों के पाले,
रहे मिट के मिटनेवाले
जिसे मौत ने न पूछा,
उसे ज़िंदगी ने मारा|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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