शकुंतला देवी के बहाने!

ग्रेट मेथमेटिकल जीनियस, गणित के कठिन से कठिन सवाल मिनटों में हल कर देने वाली शकुंतला देवी के जीवन पर बनी फिल्म देख ली, उनके बारे में अनेक जानकारियाँ प्राप्त करके अच्छा लगा|


मुझे आशा है कि इस फिल्म के लिए अच्छी शोध की गई होगी और शकुंतला देवी के किरदार को पर्दे पर विद्या बालन जी के रूप में देखना अच्छी बात है क्योंकि विद्या जी अपनी प्रत्येक भूमिका के लिए पूरी मेहनत करती हैं और निर्देशक अनु मेनन भी इस अच्छी फिल्म के लिए बधाई के पात्र हैं|


शकुंतला देवी का गणित ज्ञान अत्यंत चमत्कारी था यह तो हमने सुना ही था, लेकिन यह मालूम नहीं था कि उनको औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने का अवसर ही प्राप्त नहीं हो पाया था| जैसा फिल्म में दिखाया गया है, गाँव-देहात में रहने वाली इस बालिका के चमत्कार को देखते हुए उनके पिता उनको जगह-जगह स्कूलों, क्लबों आदि में उनका चमत्कार दिखाकर कमाई करने के लिए ले जाते रहते थे| उनको इस बालिका की आवश्यकताओं का बिलकुल खयाल नहीं रहता था, उसके ‘शो’ कराने का अलावा वो बस बैठकर अखबार पढ़ते थे|


इस प्रकार शकुंतला देवी को एक सामान्य बालिका की तरह खेलने-कूदने का अवसर नहीं मिला, बचपन पूरी तरह छिन गया| पिता से तो शकुंतला देवी कोई उम्मीद रखती नहीं परंतु उनको अपनी माँ से शिकायत रहती है कि वो कुछ नहीं बोलती, लेकिन माँ एक सामान्य गृहिणी है जो शांत ही रहती है| बचपन का सिलसिला जवानी तक जारी रहता है और वह पाती है कि उसका प्रेमी भी उसका शोषण करना चाहता था| अंततः ऐसी परिस्थिति बनती है कि वह भारत छोड़कर लंदन चली जाती है, अपने गणित के चमत्कारों के बल पर कमाने के लिए, जबकि उनको अँग्रेजी का भी पर्याप्त ज्ञान नहीं है|


किसी तरह संघर्ष करके वह अपना स्थान बनाती है, इतना ही नहीं, वह अथाह ख्याति और धन अर्जित करती है| वह कलकत्ता के एक अधिकारी से शादी भी करती है| लेकिन उसने चुना था कि वह अपनी माँ जैसी नहीं बनेगी, माँ एकदम बोलती नहीं थी और वह किसी को बोलने नहीं देती| उसकी एक पुत्री होती है और उसके बाद वह अपने शो करने के लिए विदेश भ्रमण पर चली जाती है| कुछ समय बाद वह अपने पति से झगड़कर अपनी बेटी को भी साथ ले जाती है और उसको गणित के चमत्कार सिखाने की कोशिश करती है| लेकिन बेटी महसूस करती है कि प्यार तो उसको अपने पिता से ही मिलता था|


शकुंतला देवी को बचपन नहीं मिल पाया था उनके पिता के लालच के कारण लेकिन वे अपनी बच्ची के बचपन के बारे में, उसकी आकांक्षाओं के बारे में सोच ही नहीं पातीं, क्योंकि वह उनके साथ दुनिया घूम रही है, बड़े-बड़े लोगों से मिल रही है, अपनी ख्याति की चकाचौंध में यह सोच ही नहीं पातीं कि बच्ची की कुछ और भी अभिलाषाएँ होंगी| परिणाम यह कि उनकी बेटी भी उनसे वैसे ही नफरत करती है, जैसे वो अपनी माँ से करती थीं|


कुल मिलाकर यह कि इस फिल्म से हमने शकुंतला देवी के चमत्कारिक जीवन, उनकी उपलब्धियों की झलक तो देखी ही, उसके अलावा मनोवैज्ञानिक स्तर पर संबंधों की प्रस्तुति और उसका विश्लेषण भी बहुत सुंदर किया गया है|


ये कुछ बातें हैं जो ‘शकुंतला देवी’ फिल्म देखने के बाद मेरे मन में आईं, सो मैंने आपसे शेयर कर लीं|


आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|


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