
इस नग़्मा-तराज़-ए-गुलशन ने तोड़ा है कुछ ऐसा साज़-ए-दिल,
इक तार कहीं से टूट गया इक तार कहीं से टूट गया|
शमीम जयपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इस नग़्मा-तराज़-ए-गुलशन ने तोड़ा है कुछ ऐसा साज़-ए-दिल,
इक तार कहीं से टूट गया इक तार कहीं से टूट गया|
शमीम जयपुरी
क्या शय थी किसी की पहली नज़र कुछ इसके अलावा याद नहीं,
इक तीर सा दिल में जैसे लगा पैवस्त हुआ और टूट गया|
शमीम जयपुरी
जब दिल को सुकूँ ही रास न हो फिर किससे गिला नाकामी का,
हर बार किसी का हाथों में आया हुआ दामन छूट गया|
शमीम जयपुरी
साक़ी के हाथ से मस्ती में जब कोई साग़र छूट गया,
मय-ख़ाने में ये महसूस हुआ हर मय-कश का दिल टूट गया|
शमीम जयपुरी
दुनिया-ए-मोहब्बत में हमसे हर अपना पराया छूट गया,
अब क्या है जिस पर नाज़ करें, इक दिल था वो भी टूट गया|
शमीम जयपुरी
आबगीनों की तरह दिल हैं ग़रीबों के ‘शमीम’ ,
टूट जाते हैं कभी तोड़ दिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी
अपनी तारीख़-ए-मोहब्बत के वही हैं सुक़रात,
हँस के हर साँस पे जो ज़हर पिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी
उनके क़दमों पे न रख सर, के है ये बे-अदबी,
पा-ए-नाज़ुक तो सर-आँखों पे लिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी
नश्शा दोनों में है साक़ी मुझे ग़म दे के शराब,
मय भी पी जाती है, आँसू भी पिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी
हम हैं एक शम्अ मगर देख के बुझते बुझते,
रौशनी कितने अँधेरों को दिए जाते हैं|
शमीम जयपुरी