कविताओं और शायरी के मामले में, मूल परंपरा तो यही रही है कि हम रचनाओं को उनके रचयिता याने कवि अथवा शायर के नाम से जानते रहे हैं| लेकिन यह भी सच्चाई है कि बहुत सी अच्छी रचनाएँ सामान्य जनता तक तभी पहुँच पाती हैं जब उन्हें कोई अच्छा गायक, अच्छे संगीत के साथ गाता है| इसके लिए हमें उन विख्यात गायकों का आभारी होना चाहिए जिनके कारण बहुत सी बार गुमनाम शायर भी प्रकाश में आ पाते हैं|
आज मैं गुलाम अली साहब की गाई एक प्रसिद्ध गजल शेयर कर रहा हूँ, जिसे जनाब मसरूर अनवर साहब ने लिखा है|
लीजिए प्रस्तुत है यह ग़ज़ल, मुझे विश्वास है कि आपने इसे अवश्य सुना होगा-
हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही हमको किसके ग़म ने…
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही हमको किसके ग़म ने…
नफरतों के तीर खाकर, दोस्तों के शहर में हमने किस किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही हमको किसके ग़म ने…
क्या बताएँ प्यार की बाजी, वफ़ा की राह में कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही हमको किसके ग़म ने..
एक किस्सा याद आ रहा है, एक सज्जन थे, नशे के शौकीन थे, रात में सोते समय भी सिगरेट में नशा मिलाकर पीते थे, एक बार सुट्टे मारते-मारते सो गए, और बाद में अचानक उन्हें धुआं सा महसूस हुआ, कुछ देर तो सोचते रहे कि कहाँ से आ रहा है, बाद में पता चला कि उनका ही कंबल जल रहा था, खैर घर के लोगों ने जल्दी ही उस पर काबू पा लिया और ज्यादा नुक़सान नहीं हुआ।
मुझे मीर तक़ी ‘मीर’ जी की एक गज़ल याद आ रही है, जिसे मेहंदी हसन साहब ने अपनी खूबसूरत आवाज़ में गाया है। यहाँ भी एक नशा है, इश्क़ का नशा, जिसमें जब आग लगती है तो शुरू में पता ही नहीं चलता कि धुआं कहाँ से उठ रहा है।
ऐसा लगता है कि किसी दिलजले की आह, शोला बनकर आसमान में ऊपर उठ रही है। और यह भी कि जो इंसान उस एक ‘दर’ से उठ गया, तो फिर उसके लिए कहीं, कोई ठिकाना नहीं बचता। और फिर शायर जैसे अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि हम उस गली से आज ऐसे उठे, जैसे कोई दुनिया से उठ जाता है।
अब ज्यादा क्या बोलना, वह गज़ल ही पढ़ लेते हैं ना-
देख तो दिल कि जां से उठता है, ये धुआं सा कहाँ से उठता है।
गोर किस दिलजले की है ये फलक़, शोला एक सुबह यां से उठता है।
बैठने कौन दे फिर उसको, जो तेरे आस्तां से उठता है।
यूं उठे आह उस गली से हम, जैसे कोई जहाँ से उठता है।
मीर साहब ने दो शेर और भी लिखे हैं, लेकिन उनकी भाषा इतनी सरल नहीं है, मैं यहाँ उतनी ही गज़ल दे रहा हूँ, जितनी मेंहदी हसन साहब ने गाई है।
प्रसिद्ध शायर अहमद फ़राज़ साहब की एक गजल आज प्रस्तुत कर रहा हूँ| फ़राज़ साहब भारतीय उपमहाद्वीप के बहुत मशहूर शायर हैं, वैसे विभाजन के बाद वे पाकिस्तान में रहते थे |
शायरी की दुनिया में फ़राज़ साहब बहुत मशहूर हैं और उनकी अनेक गज़लें जगजीत सिंह जी और गुलाम अली जी ने भी गायी हैं-
किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं, नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं ।
जब वो थे, तलाशे-ज़िंदगी भी थी, अब तो मौत के ठिकाने ढूँढते हैं ।
कल ख़ुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था, आज हुए से दीवाने ढूँढते हैं ।
मुसाफ़िर बे-ख़बर हैं तेरी आँखों से, तेरे शहर में मैख़ाने ढूँढते हैं ।
तुझे क्या पता ऐ सितम ढाने वाले, हम तो रोने के बहाने ढूँढते हैं ।
उनकी आँखों को यूँ ना देखो ’फ़राज़’, नए तीर हैं, निशाने ढूँढते हैं ।
कल मैंने कैफी आज़मी साहब की एक ग़ज़ल शेयर की थी जो एक महान शायर होने के अलावा शबाना आज़मी के पिता भी थे| आज मैं ज़नाब अली सरदार जाफ़री साहब की एक रचना शेयर कर रहा हूँ, वे भी एक महान शायर थे और उनकी ही पीढ़ी के थे, फिल्मों में भी उनके बहुत से गीत लोकप्रिय हुए हैं
आज जो गीत शेयर कर रहा हूँ उसको जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने बड़े सुंदर ढंग से गाया है| लीजिए आज प्रस्तुत है ये प्यारा सा गीत, अकेलेपन अर्थात तन्हाई के बारे में-
आवारा हैं गलियों के, मैं और मेरी तन्हाई, जाएँ तो कहाँ जाएँ हर मोड़ पे रुसवाई|
ये फूल से चहरे हैं, हँसते हुए गुलदस्ते कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते, राहें भी तमाशाई, राही भी तमाशाई|
मैं और मेरी तन्हाई|
अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे कातिल नज़र आती है दुनिया की हवा जैसे, रोती है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई|
मैं और मेरी तन्हाई|
आकाश के माथे पर तारों का चरागाँ है पहलू में मगर मेरे, जख्मों का गुलिस्तां है, आंखों से लहू टपका, दामन में बहार आई|
मैं और मेरी तन्हाई|
हर रंग में ये दुनिया, सौ रंग दिखाती है रोकर कभी हंसती है, हंस कर कभी गाती है, ये प्यार की बाहें हैं या मौत की अंगडाई|
आज बिना किसी भूमिका के जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल शेयर कर रहा हूँ, जो एक फिल्म में उनकी ही बेटी शबाना आज़मी पर फिल्माई गई थी|
मन की स्थितियों को, भावनाओं को किस प्रकार ज़ुबान दी जाती है ये कैफ़ी साहब बहुत अच्छी तरह जानते थे और शायरी के मामले में वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं|
लीजिए प्रस्तुत है यह प्यारी सी ग़ज़ल-
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं, दबा दबा ही सही दिल में प्यार है कि नहीं |
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मेरी तरह तेरा दिल बे-क़रार है कि नहीं |
वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है, उस एक पल का तुझे इंतज़ार है कि नहीं|
तेरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं|
इंटरनेट पर ज्ञान देने वाले तो भरे पड़े हैं, पर मैं अज्ञान का ही पक्षधर हूँ। जो व्यक्ति आज भी दिमाग के स्थान पर दिल पर अधिकतम भरोसा करते हैं, उनमें कवि-शायर काफी बड़ी संख्या में आते हैं। वहाँ भी सभी ऐसे हों, ऐसा नहीं है।
आज मन हो रहा है निदा फाज़ली साहब की शायरी के बारे में कुछ बात करूं। इस इंसान ने कितना अच्छा लिखा है, देख-सुनकर आश्चर्य होता है, पूरी तरह ज़मीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे निदा फाज़ली साहब। अपने दोहों में ही उन्होंने आत्मानुभूति का वो अमृत उंडेला है कि सुनकर मन तृप्त हो जाता है।शुरू में तो उसी गज़ल के अमर शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे शीर्षक लिया है-
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला, चिड़ियों को दाने, बच्चों को, गुड़धानी दे मौला।
फिर मूरत से बाहर आकर, चारों ओर बिखर जा, फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला।
दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है, सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला।
और कितनी सादगी से कितनी बड़ी बात कहते हैं, कुछ गज़लों से कुछ शेर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था, सारा घर ले गया, घर छोड़ के जाने वाला।
एक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया, कोई जल्दी तो कोई देर में जाने वाला।
************ अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं, रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं। *************
घर से मस्ज़िद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए। ************
बच्चों के छोटे हाथों को, चांद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर ये भी, हम जैसे हो जाएंगे। ************
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।
बरसात का बादल तो, दीवाना है क्या जाने, किस राह से बचना है, किस छत को भिगोना है। ***********
वृंदाबन के कृष्ण कन्हैया अल्ला हू, बंसी, राधा, गीता, गैया अल्ला हू।
एक ही दरिया नीला, पीला, लाल, हरा, अपनी अपनी सबकी नैया अल्ला हू।
मौलवियों का सज़दा, पंडित की पूजा, मज़दूरों की हैया हैया, अल्ला हू। *********** दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम, थोड़ी बहुत तो ज़ेहन में नाराज़गी रहे। ***********
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना हो, कई बार देखना।
मुझको निदा जी के जो शेर बहुत अच्छे लगते हैं, उन सभी को लिखना चाहूं तो दस-बीस ब्लॉग तो उसमें निकल जाएंगे, मैंने कुछ गज़लों से एक- या दो शेर लिखे हैं, लेकिन उनमें से कोई शेर भी छोडने योग्य नहीं है।
अंत में उनके कुछ दोहे, जिनमें बड़ी सादगी से गहरा दर्शन प्रस्तुत किया गया है-
मैं रोया परदेस में, भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी, बिन तार।
छोटा करके देखिए जीवन का विस्तार, आंखों भर आकाश है, बांहों भर संसार।
सबकी पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत, मस्ज़िद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत।
सपना झरना नींद का, जागी आंखें प्यास, पाना, खोना, खोजना, सांसों का इतिहास।
मैंने कुछ शेर यहाँ दिए, क्योंकि यहाँ लिखने की कुछ सीमाएं हैं। इन कुछ उद्धरणों के माध्यम से मैं उस महान शायर को याद करता हूँ, जिसने हिंदुस्तानी शायरी में अपना अनमोल योगदान किया है।
आज मैं उर्दू के प्रसिद्ध शायर जिगर मुरादाबादी साहब की एक गज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ| उस्ताद शायरों का अंदाज़ ए बयां क्या होता है, ये ऐसे माहिर शायरों की शायरी को सुन कर मालूम होता है, मामूली सी बात उनके अशआर में ढलकर लाजवाब बन जाती है|
आइए आज इस गज़ल का आनंद लेते हैं-
आदमी आदमी से मिलता है, दिल मगर कम किसी से मिलता है|
भूल जाता हूँ मैं सितम उसके, वो कुछ इस सादगी से मिलता है|
आज क्या बात है कि फूलों का, रंग तेरी हँसी से मिलता है|
मिल के भी जो कभी नहीं मिलता, टूट कर दिल उसी से मिलता है|
कारोबार-ए-जहाँ सँवरते हैं, होश जब बेख़ुदी से मिलता है|
आज साहिर लुधियानवी साहब की एक रचना शेयर कर रहा हूँ| साहिर जी फिल्मी दुनिया के एक ऐसे गीतकार थे जिनका नाम अदब की दुनिया में भी बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता था| वे मुशायरों की शान हुआ कराते थे और बड़े स्वाभिमानी भी थे, उन्होंने ही फिल्म और संगीत वालों के सामने यह शर्त रखी थी कि जिस तरह संगीतकार का नाम लिखा जाता है, उसी तरह गीतकार का भी नाम लिखा जाए, नहीं तो मैं गीत नहीं लिखूंगा|
हम आज भी साहिर जी की अनेक फिल्मी और गैर-फिल्मी रचनाओं को गुनगुनाते थे| जहां ताजमहल को लेकर अनेक मुहब्बत के गीत लिखे गए हैं और कवि-शायरों ने उसे मुहब्बत की निशानी बताया है, वहीं साहिर साहब ने लिखा है-‘एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल, हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक|
आज की यह रचना भी हमें हिम्मत न हारने और हौसला बनाए रखने की प्रेरणा देती है-
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो, कठिन सही तेरी मंजिल मगर उदास न हो|
कदम कदम पे चट्टानें खडी़ रहें लेकिन, जो चल निकले हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते| हवाएँ कितना भी टकराएँ आँधियाँ बनकर मगर घटाओं के परचम कभी नहीं झुकते| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…
हर एक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं मगर, हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है| हजारों चाँद सितारों का खून होता है, तब एक सुबह फ़िजाओं पे मुस्कुराती है| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…
जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते, वो जिंदगी में नया रंग ला नहीं सकते| जो रास्ते के अँधेरों से हार जाते हैं, वो मंजिलों के उजाले को पा नहीं सकते| मेरे नदीम मेरे हमसफ़र…