
तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या,
हम-सुख़न तेरी ख़ामुशी है अभी|
नासिर काज़मी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या,
हम-सुख़न तेरी ख़ामुशी है अभी|
नासिर काज़मी
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ,
उनसे कितना कुछ कहने की कोशिश की|
गुलज़ार
ख़यालों के तारीक खंडरात में,
ख़मोशी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी|
आदिल मंसूरी
चमकती है अंधेरों में ख़मोशी,
सितारे टूटते हैं रात ही में|
निदा फ़ाज़ली
किसी से गुफ़्तुगू करने को जी नहीं करता,
मिरी ख़मोशी ही मेरा कलाम हो गई है|
राजेश रेड्डी
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता,
मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता|
गुलज़ार
अहल-ए-महफ़िल पे कब अहवाल खुला है अपना,
मैं भी ख़ामोश रहा उसने भी पुर्सिश* नहीं की|
*पूछताछ
अहमद फ़राज़
कान बजते हैं मोहब्बत के सुकूत-ए-नाज़ को,
दास्ताँ का ख़त्म हो जाना समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
ऐ लब-ए-नाज़ क्या हैं वो असरार,
ख़ामुशी जिनकी तर्जुमानी है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
हमारी उनसे जो थी गुफ़्तुगू वो ख़त्म हुई,
मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाक़ी है|
जावेद अख़्तर