
एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है|
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है|
दुष्यंत कुमार
कल शाम छत पे मीर-तक़ी-‘मीर’ की ग़ज़ल,
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए|
अंजुम रहबर
जब हो सकी न बात तो हमने यही किया,
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए|
कुंवर बेचैन
सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत,
मस्जिद जाए मौलवी कोयल गाए गीत|
निदा फाज़ली