
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है|
राहत इन्दौरी
शायरी ख़्वाब दिखाएगी कई बार मगर,
दोस्ती ग़म के फ़सानों से बनाए रखना|
आशियाँ दिल में रहे आसमान आँखों में,
यूँ भी मुमकिन है उड़ानों से बनाए रखना|
बालस्वरूप राही
यह जमीं तो कभी भी हमारी न थी,
वह हमारा तुम्हारा गगन खो गया|
रामावतार त्यागी
तो ये किसलिए शबे-हिज्र के उसे हर सितारे में देखना,
वो फ़लक कि जिसपे मिले थे हम, कोई और था उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
सुनहरी सरज़मीं मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा,
मगर अब तक नहीं समझा, ठिकाना है कहाँ मेरा|
बेकल उत्साही
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया,
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की|
क़तील शिफ़ाई
हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो,
आ जायेगी जमीन पे छत आसमान की|
गोपालदास ‘नीरज’
रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है|
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता है|
राहत इन्दौरी
जो धरा से कर रही हैं कम गगन का फासला,
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक|
कुंवर बेचैन
चांद तन्हा है आसमां तन्हा,
दिल मिला है कहां-कहां तन्हा|
मीना कुमारी (महज़बीं बानो)