
नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है,
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है,
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं|
राहत इन्दौरी
वो तो सोते जागते रहने के मौसमों का फुसूँ,
कि नींद में हों मगर नींद भी न आई हो|
परवीन शाकिर
यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ मैं,
आँखें मेरी अपनी हैं पर उनमें नींद पराई है|
क़तील शिफ़ाई
रात भी नींद भी कहानी भी,
हाय, क्या चीज है जवानी भी|
फ़िराक़ गोरखपुरी
नींद टूटी तो फिर नहीं आई,
क्या बताएँ कि ख़्वाब क्या देखा !
नक़्श लायलपुरी
नींद से मेरा त’अल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं|
राहत इन्दौरी
सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे,
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे|
राहत इन्दौरी
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में,
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
निदा फ़ाज़ली
मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आंखों में,
तमाम रात कोई झांकता लगे है मुझे|
जां निसार अख़्तर
जो आंसुओं में कभी रात भीग जाती है,
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे|
जां निसार अख़्तर