
एक धुएँ का मर्ग़ोला सा निकला है,
मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की|
गुलज़ार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
एक धुएँ का मर्ग़ोला सा निकला है,
मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की|
गुलज़ार
चिंगारी इक अटक सी गई मेरे सीने में,
थोड़ा सा आ के फूँक दो उड़ता नहीं धुआँ|
गुलज़ार
आँखों के पोछने से लगा आग का पता,
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ|
गुलज़ार
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ,
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ|
गुलज़ार
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है,
न पूरे शहर पर छाए तो कहना|
जावेद अख़्तर
बिजली का क़ुमक़ुमा न हो काला धुआँ तो हो,
ये भी अगर नहीं हो तो बुझ जाना चाहिए|
निदा फ़ाज़ली
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है|
राहत इन्दौरी
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले,
ये ऐसी आग है जिसमें धुआं नहीं मिलता|
निदा फ़ाज़ली
बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआं तन्हा|
मीना कुमारी (महज़बीं बानो)