
ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में,
किसी को ढूँढ़ते हैं हम किसी में|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में,
किसी को ढूँढ़ते हैं हम किसी में|
निदा फ़ाज़ली
देखा है जिसे मैंने कोई और था शायद,
वो कौन था जिससे तिरी सूरत नहीं मिलती|
निदा फ़ाज़ली
देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद,
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती|
निदा फ़ाज़ली